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________________ ओसवाल आति का इतिहास भमा में रहे, इनके पुत्र भीमराजजी वहाँ से गोगोलाव आये । भीमराजजी के पुत्र मोतीचन्दजी के चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ लालचन्दजी, गुलाबचन्दजी, पीरचन्दजी, और पनराजजी थे। वर्तमान परिचय लालचन्दजी के परिवार का है। सेठ लालचन्दजी का जन्म संवत १८८१ का था। जब आप २५ वर्ष के थे, उस समय म्या. पार के लिये बंगाल प्रान्त के चीलमारी नामक स्थान पर गये। वहाँ जाकर टोडरमलजी वागचा नसरा के साझे में लालचन्द टोडरमल के नाम से साधारण फर्म स्थापित की। यह फर्म ६ वर्ष तक कपड़े का व्यापार करती रही। पश्चात् भाप दोनों ही भागीदार अलग अलग हो गये। सेठ लालचन्दजी ने अलग होते ही अपने पुत्र अमानमलजी के नाम से संवत् १९२१ में लालचन्द अमानमल के नाम से अपनी स्वतन्त्र फर्म खोली। इस बार इस फर्म में बहुत लाभ रहा। अतएव उत्साहित होकर संवत् १९४८ में चीलमारी ही में एक प्रांच और मेघराज दुलीचन्द के नाम से स्थापित की और उस पर कपड़े का व्यापार प्रारम्भ किया। इसके पश्चात् संवत् १९५३ में आपने अपने व्यापार को विशेष उत्तेजन प्रदान किया, एवम् कलकत्ते में लालचन्द अमानमल के नाम से अपनी एक फर्म और खोली। इस फर्म पर चलानी का काम प्रारम्भ किया गया। लिखने का मतलब यह कि भापने व्यापार में बहुत सफलता प्राप्त की । हजारों लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। यही नहीं बल्कि उसका सदुपयोग भी अच्छा किया । भापने संवत् १९३६ में श्री सम्मेद शिखरजी का एक संघ निकाला था। भापका स्वर्गवास संवत् १९५४ में हो गया। आपके सेठ अमानमलजी और मेघराजजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ अमानमलजी और मेघराजजी दोनों भाई भी अपने पिताजी की भाँति योग्य और होशिपार रहे। आप लोगों के समय में भी फर्म की बहुत उन्नति हुई। आप लोगों ने संवत् १९५७ में माणक्याचर मामक स्थान पर उपरोक्त नाम से अपनी फर्म की एक शाखा खोल कर जूट कपड़ा एवम् ध्याज का काम प्रारम्भ किया। इसी प्रकार संवत् १९६१ में भी सुनामगंज में इसी नाम से फर्म खोक कर उपरोक न्यापार प्रारम्भ किया। इसी प्रकार संवत् १९०१ में राम इमरतगंज (मैमनसिंह) में संवत् १९८० में वक्षीगंज (रंगपुर) में, संवत् १९८१ में कालीबाजार ( रंगपुर) में अपनी फर्म की प्राचे खोली और इन सब पर जूट व्याज और गिरवी का काम प्रारम्भ किया। जो इस समय भी हो रहा है । सेठ भमानमलजी का स्वर्गवास संवत् १९८४ में हो गया। सेठ मेघराजजी इस समय विद्यमान है। सेठ अमानमराजी वदे मल व्यापारी और प्रतिभाशाली म्यक्ति थे। जोधपुर स्टेट एवम् वहाँ की प्रजा में भापका बहुत सम्मान था। एक बार का प्रसंग है कि गोगोलाब के जाटों का मामला जोधपुर कोर्ट तक हो आया मगर उसका कोई संतोषजनक फैसला नहीं हुआ। इस मामले को मापने पंचायत के
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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