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सवाल जाति का इतिहास
गढ़ पर हमला किया परन्तु अपने ५०, ६० आदमियों के मारे जाने पर भी गढ़ को कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सके। तब महाराणा प्रधान शेरसिंहजी को वहां पर भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर लावे पर अधिकार कर लिया और चतुरसिंह को महाराणा के सामने हाजिर किया । महाराणा ने इनकी इस सेवा से प्रसन्न होकर इन्हें कीमती खिलअत, सीख के समय बीड़ा तथा ताजीम की इज्जत प्रदान करना चाहा । शेरसिंहजी ने खिलअत और बीड़ा तो स्वीकार कर लिया परन्तु ताजीम लेने से इन्कार किया ।
जब महाराणा सरूपसिंहजी ने सरूपशाही रुपया बनवाने का विचार किया उस समय शेरसिंहजी ने कर्नल रविन्सन से लिखा पढ़ी कर इसकी परवानगी मँगा ली थी । जिससे सरूपशाही रुपया बनने लगा ।
वि० सं० १९०७ में ( ई० सन् १८५० ), वितख आदि पालों की भील जाति तथा वि० सं० १९१२ ( ई० सन् १८५५ ) में पश्चिमी प्रान्त के कालीवास आदि स्थानों भील जाति को सजा देने के लिये शेरसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र सवाईसिंहजी भेजे गये, जिन्होंने इन्हें सख्त सजा देकर सीधा किया ।
वि० सं० १९०८ में लुहारी के मीनों ने सरकारी डाक लूट ली जिसकी गवर्नमेंट की तरफ से शिकायत होने पर महाराणा की आज्ञा से शेरसिंहजी के पौत्र ( सवाईसिंहजी के पुत्र ) अजितसिंहजी को, जो उस समय जहाजपुर के हाकिम थे, भेजा । जालंधरी के सरदार अमरसिंह शक्तावत के साथ इन्होंने इस मीना जाति का दमन किया और बड़ी बहादुरी के साथ लड़कर छोटी बड़ी लुहारी पर अपना अधिकार कर लिया । मीने भागकर मनोहर गढ़ तथा देवका खेड़ा में जा छिपे किन्तु इन्होंने वहाँ भी उनका पीछा किया । इतने में मीनों के कई सहायक जयपुर, टोंक और बूँदी इलाकों से आ पहुँचे । दोनों में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें अजितसिंहजी के बहुत से सैनिक खेत रहे, तथा बहुत से घायल हुए। इस पर महाराणा की भाज्ञा से शेरसिंहजी ने आकर मीनों का दमन किया। वि० सं० १९१३ में (१८५६ ) महाराणा ने मेहता शेरसिंहजी के स्थान पर उनके भतीजे योकुलचन्द्रजी को प्रधानं नियुक्त किया । सिपाही विद्रोह के समय नीमच की सरकारी सेना ने भी बागी होकर छावनी जला दी और खजाना लूट लिया । डाक्टर मरे आदि कई अंग्रेज़ वहाँ से भागकर मेवाड़ के केपूदा गाँव में पहुँचे। वहाँ भी बागियों ने उनका पीछा किया। कप्तान शावसं मे यह खबर पाते ही महाराणा की सेना सहित नीमच की तरफ प्रस्थान किया । महाराणा ने अपने कई सरदारों को भी उक्त कप्तान के साथ कर दिया । इतना ही नहीं किन्तु ऐसे नाजुक समय में कार्य कुशल मंत्री का साथ रहना उचित समझ कर महाराणा ने शेरसिंहजी को प्रधान की हैसियत से उक्त पोलिटिकल एजण्ट के साथ कर दिये और विद्रोह के शान्त होने तक शेरसिंहजी भी बराबर सहायता करते रहे । निम्बाहेड़े के मुसलमान अफसर के बागियों से मिलजाने की खबर सुनकर कप्तान शावर्स ने
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