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________________ बच्छावत चातुर्मास किया था। यह उपाश्रय भाज भी बीकानेर के रांगणीके चौक में विद्यमान है। इसमें देखने योग्य एक प्राचीन पुस्तकालय है जिसमें कर्मचन्दजी का चित्र भी लगा हुआ है। मंत्री कर्मचन्दजी के दो पुत्र थे-भाग्यचन्द्रजी और लखमीचन्दजी। राजा रायसिंहजी के भी दो पुत्र थे-भूपतसिंहजी तथा दलपतिसिंहजी । ऐसा कहा जाता है कि राजा रायसिंहजी निम्न लिखित कारणों से कर्मचन्दजी पर नाराज हो गये थे, अतएव कर्मचन्दजी अपने पुत्र परिवार को लेकर मेड़ता चले गये थे। (१) रायसिंहजी के छोटे पुत्र दलपतिसिंहजी को राजा बनाने की चेष्टा करना। (२) कर्नल पावलेट ने बीकानेर-गजेटियर में लिखा है कि, "जिस समय बादशाह कर्मचन्दजी से शतरज खेलते थे उस समय कर्मचन्दजी तो बैठे रहते थे लेकिन बीकानेर नरेश खड़े रहते थे।" यह भी उनकी नाराजी का एक कारण था। कर्मचन्दजी मेड़ता जाकर अपना धार्मिक जीवन बिताने लगे। इसी समय बादशाह ने बीकानेर नरेश द्वार। इनें बुलवाया था। इसके बाद कर्मचन्दजी बादशाह से अजमेर मिलने गये और वे देहली जाकर रहने लगे। वहां बादशाह ने आपका यथोचित सत्कार कियो तथा एक सोने के जेवर सहित शिक्षित घोड़ा प्रदान किया। बादशाह के पुत्र जहांगीर के मूल नक्षत्र में पैदा होने पर बादशाह ने सब धर्मों में गृहों की शान्ति करवाई। उसी सिलसिले में जैन धर्म की रीत्यानुसार शान्ति करवाने का भार कर्मचन्दजी पर छोड़ा था जिसे उन्होंने पूरा किया। कर्मचन्दजी जब देहली में बीमार पड़ गये उस समय राजा रायसिंहजी उन्हें सांत्वना देने के लिये पधारे थे। वहां जाकर उन्होंने बहुत खेद प्रगट किया और आंखो में आंसू भरलाये। रायसिंहजी के चले जाने पर कर्मचन्दजी ने अपने पुत्रों को कहा कि महाराज की आँखों में आंसू आने का कारण मेरी बीमारी नहीं है किन्तु इसका वास्तविक कारण यह है कि वे मुझे सजा नहीं दे सके । इसलिये तुम बीकानेर कभी मत जाना। कर्मचन्दजी की मृत्यु होजाने के पश्चात् राजा रायसिंहजी ने बुरहानपुर में अपनी रुग्णावस्था में अपने पुत्रों से कहा कि "कर्मचन्द तो मरगया अब तुम उनके पुत्रों को मारना । मुझे मारने के षड़यंत्र में जो २ लोग शामिल थे उन्हें भी दण्ड देना। सूरसिंहजी ने इस बात को स्वीकार किया। . रायसिंहजी की मृत्यु के पश्चात् बादशाह जहांगीर ने दलपत को बीकानेर का स्वामी बनाया। परंतु पीछे संवत् १६७० में बादशाह उनसे नाराज होगये और उन्होंने सूरसिंहजी को बीकानेर का स्वामी घोषित किया। सूरसिंहजी बादशाह से दिल्ली मिलने गये और आते समय कर्मचन्दजी के पुत्रों को तसल्ली देकर सपरिवार अपने साथ लिवा लाये। आपने कर्मचन्दजी के इन दोनों पुत्रों को मंत्री पद पर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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