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ओसवाल जाति का इतिहास
में कर उन्होंने वहां अपनी दुहाई फेर दी। वहीं तालाब के किनारे उत्तम जगह को देखकर गोरेजी की मूर्ति को स्थापित किया तथा वहीं रहने लगे। आगे चलकर इसी स्थान का नाम कोड़मदेसर प्रसिद्ध हुआ। यह स्थान अभी भी वहां वर्तमान है और बीकानेर के राजकुमारों का मुंडन संस्कार यहीं होता है। यहां पर राजमहल भी बने हुए हैं। संवत् १५४१ में राव बीकाजी ने रातीघाटी नामक पहाड़ पर एक किला बनवाकर नगर बसाया जो वर्तमान में बीकानेर के नाम से प्रसिद्ध है। मंत्री बछराजजी ने भी बीकानेर के पास अपने नाम से बच्छासर नामक एक गांव बसाया। बच्छावत गौत्र की स्थापना
कुछ समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् बछराजजी ने शत्रुञ्जय और गिरनार की तीर्थयात्रा करने के हेतु एक बड़ा संघ निकाला। मार्ग में सब साधर्मी भाइयों को वरपति एक मुहर एक थाल और एक लड्डू की लहान बांटी तथा संघपति की पदवी को प्राप्त की। इसके बाद आप श्री जिनकुशल सूरि महाराज के साथ देवराज नगर ( जो वर्तमान में मुल्तान के पास है ) में यात्रा करने के लिये गए । आपके वंशज इसी समय से आपके नाम से बच्छावत कहलाने लगे। राव बीकाजी ने आपकी कार्यक्षमता से प्रसन्न होकर आपको 'परभूमि पंचानन' के खिताब से मुशोभित किया ।
___एक समय की बात है जब कि बछराजजी राव बीकाजी के कोठारी थे उसी समय एक दिन भोजन में खीर बनी थी। उस दिन ब्राह्मण खीर में शक्कर डालना भूल गया। इससे रावजी ने एक डावडी (नौकरानी) को बछराजजी के पास भेज कर शक्कर मँगवाई। बछराजजी ने भूल से शक्कर के बदले नमक भेज दिया। नमक डालने से खीर खारी हो गई जिससे रावजी उसे न खा सके। इससे नाराज़ होकर उन्होंने कोठारी बछराजजी को बुलवाया तथा नमक भेजने के लिये भला बुरा कहा। इस पर बछराजजी ने अपनी भूल को छिपा कर बड़ी बुद्धिमानी से उत्तर दिया कि महाराज हमेशा जो डावड़ी सामान लेने के लिए आती है कल वह नहीं आई थी। उसके स्थान पर दूसरी डावड़ी को देखकर मैंने जानबूझ कर नमक भेजा था। इसका कारण यह था कि संभव है वह शक्कर में कुछ मिला कर आपको देदे। नमक भेजने से मैंने यह सोचा था कि जिसमें आप नमक डालेंगे वह वस्तु खारी हो जायगी और आप न खा सकेंगे, जिससे यदि उसमें कोई वस्तु भी मिला दी जायगी तो अमंगल नहीं होगा। यदि आप हमेशा आने वाली डावड़ी को भेजते तो मैं नमक न भेजता।" बछराजजी का यह उत्तर सुनकर राव बीकाजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बछराज जी को और भी तरकी की तथा उन्हें और भी ज्यादा विश्वासपात्र समझने लगे।
राव बीकाजी के रंगादेवी भामक स्त्री थी। जिसकी कोख से लूनकरनजी, नरसीजी, राजसीजी,