SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोसवाल जाति का इतिहास हरकचंदजी के पश्चात उनके पुत्र इन्द्रचन्द्रजी हुए और उनके पश्चात् उनके पुत्र गोविन्दचय जी जगतसेठ की गादी पर आये। ये इतने उड़ाऊ थे कि इन्होंने अपने घर के गहने और कपड़ों तक को बेच डाला। अंत में जब आजीविका का सवाल उपस्थित हुआ तब उन्होंने अंग्रेज सरकार की शरण ली। बहुत मिहनत के पश्चात् सरकार ने इनको १२००) मासिक जीवन भर देने का निश्चय किया। इनके यहाँ सेठ गुलाबचन्दजी दत्तक आये जिनके पुत्र फतेचन्दजी इस समय विद्यमान हैं। . इस प्रकार जिस स्थान पर एक दिन वैभव और अधिकार का प्रखर सूर्य अपनी हजारों गौरवमय किरणों से देदीप्यमान हो रहा था, परिवर्तन के प्रवलचक्र में पढ़ कर वहाँ साधारण दीपक का प्रकाश भी कठिनता से दृष्टिगोचर होता है। इतना होने पर भी जगतसेठ के नाम के साथ जिस अतीत गौरव और भव्यता की कड़िये बंधी हुई है, करालकाल उनको नष्ट नहीं कर सका । व्यक्ति शुद्र है पर उसका गौरव, उसकी कीर्ति और उसका बल महान् है, चिराराध्य है, अजर अमर है। सेठ पूनमचन्द ताराचन्द गेलड़ा, मद्रास - इस खानदान के पूर्व पुरुष नागौर में निवास करते थे। ऐसा कहा जाता है कि करीब तीन-चार सौ वर्ष पूर्व यह खानदान नागोर से उठकर कुचेरा चला गया। आप लोग ओसवाल गेलड़ा गौत्र के स्थानकवासो सजन हैं। इस खानदान में श्रीयुत् कालूरामजी हुए । आपके चार पुत्र हुए जिनका नाम क्रम से मुल्तानमलजी, शम्भूमलजी, अमरचन्दजी और छगनमलजी था । इनमें से श्रीयुत् अमरचन्दजी सर्व प्रथम करीब १२५ वर्ष पहले पैदल रास्ते कुचेरा से चलकर जालना होते हुए मद्रास आये। आप बड़े कर्मवीर और साहसी पुरुष थे। आपने यहाँ पर आकर पहले पहल कुछ समय तक सर्विस की। मगर कुछ समय पश्चात् यहां के अंग्रेज अफसरों के उत्साहित करने पर आपने रेजीमेण्टल बैंकर्स का काम प्रारम्भ किया। इसमें आपको खूब सफलता मिली। संवत् १९५२ में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रम से पूनमचन्दजी, हीराचन्दजी और रामबक्षजी था। पूनमचन्दजी का जन्म संवत् १९२१ में हुआ। आप अपने पिता के बड़े योग्य पुत्र थे। आपने अपनी सहृदयता और मिलनसारी से बहुत नामवरी और यश प्राप्त किया। जब तक आप जीवित रहे तब तक सब भाई और कुटुम्ब शामिल ही काम करते रहे। आपका स्वर्गवास १२ वर्ष की उम्र में संवत् १९६३ में हो गया। आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रम से श्रीताराचन्दजी, किशनलालजी और इन्द्र. चन्द्रजी था। इनमें से इन्द्रचन्द्रजी अमोलकचन्दजी के यहाँ दत्तक चले गये । __श्रीयुत् ताराचन्दजी का जन्म संवत् १९४० का है आप बड़े योग्य, सज्जन और धर्मप्रेमी पुरुष हैं। आपके तीन पुत्र हैं। श्रीयुत भागचन्दजी, नेमीचन्दजी और खुशालचन्दजी। श्री भागचन्दजी बढे शिक्षित और स्वदेश-प्रेमी सजन हैं। आपके श्री अबीरचन्दजी नामक एक पुत्र हैं। ___ ब्यावर गुरुकुल, मद्रास महावीर औषधालय, ब्यावर जैनपाठशाला, जैनज्ञान पाठशाला उदयपुर, हुक्मीचन्द मण्डल रतलाम इत्यादि संस्थाओं में आप काफी सहायता पहुंचाते रहते हैं। मतलब यह कि ओसवाल समाज में यह खानदान बहुत अग्रगण्य है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy