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________________ जगत् सैठ का इतिहास और गंगा के समान धन के प्रवाह की ताकत से देखते ही देखते भागीरथी के किनारे मुर्शिदाबाद नामक विशाल नगर की स्थापना की। कुछ ही समय में उनकी योजना सफल हो गई और बङ्गाल की राजधानी ढाके से उठ कर मुर्शिदाबाद को आगई। अजीमुश्शान केवल नाम मात्र का नबाब रह गया। मुर्शिदकुलीखाँ और माणिकचन्द को बहाल, बिहार और उड़ीसा की प्रजाने विना अभिषेक के अपने सर्वोपरि सत्ताधिकारी स्वीकृत किये। इनकी सत्ता में किसानों पर होने वाले जागीरदारों के अत्याचार बहुत कम हुए। पैसे की वजह से गरीब प्रजा पर जो अत्याचार होते थे माणिकचन्द सेठ ने स्वयं उनको दूर किये। बङ्गाल की प्रजा में एक बार फिर सुख और शान्ति की लहर दौड़ गई। आगरा और दिल्ली में जिस समय पुर जोश से राज्य क्रान्ति मचरही थी उस समय मुर्शिदकुलोखाँ और जगत सेठ की क्षमता और प्रताप से बङ्गाल उस क्रांति की चिनगारियों से बचा हुआ था। अंग्रेज व्यापारी उस समय अपनी कुटिल-नीति का उपयोग कर कर्नाटक, मद्रास और सूरत में अपनी कोठियाँ स्थापित कर भूमि पर कब्जा कर रहे थे। मगर मुर्शिदकुलीखाँ के तेज और बाहुबल की बजह से वे भी अपने कदम बंगाल में न रोप सके। मगर यह शान्तिपूर्ण अवस्था अधिक समय तक जीवित न रह सकी। भारतवर्ष के राजनैतिक बातावरण में एक बड़ा प्रबल झोका आया और दिल्ली का तख्त अकस्मात् फरुखसियर के हाथ में चला गया। गद्दी के सच्चे वारिस जहाँदरशाह का खून हो गया। बादशाह फरुखसियर का मुगल सल्तनत के इतिहास में क्या स्थान है यह इतिहास के पाठकों से छिपा नहीं है। इस बादशाह ने मुगल साम्राज्य के वैभव की गिरती हुई इमारत को और एक जोर की लात मारी और उसको रसातल की ओर लेजाने में बड़ी मदद दी। बादशाह फर्रुखसियर एक राजपूत कन्या से विवाह करना चाहता था मगर दैवयोग से उसी समय वह बीमार हो गया। किसी भी वैध और हकीम के इलाज ने उसकी इस बीमारी पर कोई असर न किया। इसी समय दैवयोग से अंग्रेज़ कम्पनी का डाक्टर हेमिल्टन बादशाह से मिला और उसने उसको तन्दुरुस्त कर दिया। उसने अपने इस परिश्रम के बदले में बंगाल के अन्तर्गत नदी के किनारे कुछ गाँव इनाम में माँगे। मूर्ख फर्रुखसियर इतना बेभान हो रहा था कि वह कोरे कागज के ऊपर सही करने को तयार हो गया और गंगा किनारे के करीब चालीस परगने अंग्रेजों को सुपुर्द करने का फर्मान नवाब मुर्शिदकुलीखाँ को लिख दिया। अब यह फर्मान मुर्शिदकुलीखां के और जगतसेठ के सन्मुख पहुंचा तो उन्हें अंग्रेज ब्यापारियों की चालाकी, बादशाह की मूर्खता और बंगाल के अंधकारमय भविष्य के दर्शन एक साथ होने लगे। उसने बादशाह के उस फर्मान को साहसपूर्वक वापिस कर दिया और बादशाह को NE
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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