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________________ गैलडा गौत्र जगत सेठ का इतिहास अब हम पाठकों के आगे ऐसे खानदान का परिचय उपस्थित करते हैं जो सारी पोसवाल जाति . के इतिहास में सितारे की तरह नहीं प्रत्युत सूर्य के प्रकाश की तरह अगमगा रहा है। जगत सेठ म खानदान उन खानदानों में सबसे पहला है जिन्होंने अपनी अपूर्व प्रतिभा और साहस के बल पर सारी जाति का मुख उज्ज्वल किया है। राजनैतिक, व्यापारिक और धार्मिक सभी क्षेत्रों में इस खानदान) दिग्गज पुरुषों ने ऐसे विचित्र खेल खेले हैं जो किसी भी जाति के इतिहास को महानता की श्रेणी में लेजा कर रख देने के लिये पर्याप्त है। ___ जगत सेठ के पूर्वज भोसवाल जाति के गैलड़ा * गौत्रीय सज्जन थे। इस खानदान के पूर्वजों का मूल निवास स्थान नागोर (मारवाड़) का था। पहले इस खानदान की आर्थिक स्थिति बहुत गिरी दुई और अत्यंत शोचनीय थी। यहाँ तक कि हनके पूर्वज सेठ हीरानन्दजी को आर्थिक कठिनाई के मारे देश छोड़ कर बाहर जाने की जरूरत पड़ी। यह किम्बदन्ति मशहूर है कि वे अपने जीवन में हमेशा एक व यति की सेवा किया करते थे। इन जैन यति की इन पर बड़ी कृपा थी। जब ये देश छोड़ने के लिये तैयार हुए तब मूहुर्त निकलवाने के लिये उन यतीजी के पास गये और उनसे प्रार्थना की कि महाराज कोई ऐसा मुहूर्त निकालिये जिससे मेरे सब मनोरथ सिद्ध हो जाय। तब यती ने देख सुन कर उन योग्य मुहूर्त बतला दिया। उसके अनुसार दूसरे रोज प्रातःकाल वे यात्रा के लिये रवाना हुए मगर थोड़ी ही दूर जाने पर उन्होंने देखा कि एक भयंकर काला नाग उनके सामने से हो कर जा रहा है। इस अपशकुन से बरकर वे वापिस लौट गये और यति के पास आकर सारा समाचार कह सुनाया तब यति ने नाराज होकर कहा कि सेठजी, आपने बड़ी गलती की जो इतने प्रभावशाली शकुन को छोड़ कर वापिस चले आये। मगर उस शकुन से चले जाते तो अवश्य कहीं न कहीं के छत्रपति होते, मगर खैर अब भी तुम इसी वक्त बले जाओ। छत्रपति नहीं तो पत्रपति (भरब पति) तो अवश्य हो जाओगे । काना न होगा कि सेठ हीरामन्दनी उसी समय अपनी भभीष्ट सिद्धि के लिये विदेश को चल पड़े। •दंत कथाभों से मालूम होता है कि संवत् १५५२ में गैलड़ा गौत्र की उत्पत्ति खीची गहलोत राजपूत शाखा से हुई। ऐसा कहा जाता है कि इस वंश के गिरधरसिंह नामक व्यक्ति को श्री जिनहंससूरिजी ने जैन धर्म का प्रबोध देकर जैनी बनाया। गिरधरसिंह के पुत्र गेलाजी हुए। इनके ही नामसे भागे की संतान गेलड़ा गौत्र के नाम से मशहूर हुई।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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