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श्रीसवाल जाति का इतिहास
एवं स्थानीय विद्वान तथा श्रीमंतों की उपस्थिति में आप " शास्त्र विशारद" तथा जैनाचार्य की पदवी से विभूषित किये गये । इस पदवी का समर्थन भारत के अतिरिक्त विदेशीय विद्वान डाक्टर हरमन जेकोबी, प्रोफेसर जहनस हर्टल डॉबलेन मे मुक्त कंठ से किया था। आपका कई विदेशी विद्वानों से स्नेह है। आपके शिष्य आचार्य श्री इन्द्रविजयजी, न्यायतीर्थं मंगल विजयजी, श्रीमुनि विद्याविजयजी, न्यायतीर्थं न्यायविजयजी, न्याय तीर्थं हेमांशुविजयजी आदि हैं। आप सब प्रखर विद्वान एवं अनेकों ग्रन्थों के रचयिता हैं । श्री आचार्य विजयकेशर सूरिश्वरजी - आपका जन्म सम्वत् १९३३ की षोष सुदी १५ को माधवजी भाई के गृह में पालीताना तीर्थ में हुआ । आपका नाम उस समय केशवमी था। आपको सम्वत् १९५० की मगसर सुदी १० के दिन बड़ौदा में आचार्य विजय कमलसूरिश्वरजी ने धूमधाम के साथ दीक्षा दी, तथा आपका नाम केशर विजयजी रक्खा गया। गुरुजी के पास से आपने अनेकों शास्त्रों का अध्ययन किया । आपने अमेको तीर्थों के संघ निकलवाये । सम्वत् १९६३ की कार्तिक बढ़ी ६ को आप 'गणी' पद एवं सम्वत् १९६४ की मगसर सुदी १० के दिन पन्यास पदवी से विभूषित किये गये । आपने हुनरशाला, योगाश्रम एवं पाठशालाएं स्थापित करवाई । सम्वत् १९८३ की काती बदी ६ को आप आचार्य पद से विभूषित किये गये, तथा सम्वत् १९८५ की श्रावण वदी ५ को आप स्वर्गवासी हुए ।
वाल गृहस्थ के गृह में संवत् १९२५ की पोष सुदी ३ के के दिन आपने बरदीचन्दजी महाराज से दीक्षा गृहण की।
मुनिवर्य्य श्री कर्पूर विजयजी - आपका जन्म भावनगर निवासी अमीचन्द भाई नामक भोसदिन हुआ । सम्वत् १९४७ की वैशाख सुदी ६ आपने मेट्रिक तक अध्ययन किया । आपने जैन समाज में धार्मिक ज्ञान के प्रसार में विशेष भाग लिया । आप बड़े गम्भीर, गुणज्ञ तथा त्यागी साधु हैं । श्री श्राचार्य जिन कृपाचन्द्र सूरीश्वरजी - आपका जन्म चांमू (जोधपुर) निवासी मेधरथजी बापना के गृह में संवत् १९१३ में हुआ । संवत् १९३६ में अमृतमुनिजी ने भावको यति सम्प्रदाय में दीक्षा दी। आपने खेरवाड़े के जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। आपने मालवा, मारवाड़, गुजरात, काठियावाड़, बम्बई में कई चातुर्मास कर जनता को सदुपदेश दिया । आप सम्वत् १९७२ में बम्बई में "आचार्य” पद से विभूषित किये गये। आपने कई पाठशालाएं, कन्याशाळाएं एवं लायब्रेरियाँ खुलवाई । धर्मशास्त्र एवं व्याकरण के अच्छे ज्ञाता हैं, तथा खरतर गच्छ के आचार्य हैं।
आप न्याय,
श्री चार्म्य सागरानन्द सूरिजी -- भपका जन्म कपडभन्ज निवासी प्रसिद्ध धार्मिक श्रीमंत सेठ मगनलाल गाँधी के गृह में सम्वत् १९३१ में हुआ । आपके बड़े भ्राता मणिलाल गाँधी के साथ आपने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की । प्रथम आप के भ्राता ने दीक्षा ग्रहण की एवं उनका मणिविजय नाम रक्खा गया । आपके दीक्षागृहण करने के विरोध में आपके असुर ने कोर्ट से रोक की । लेकिन आपने परवाह न कर सं० १९४७ में अवेर सागरजी से दीक्षा गृहण की, और आपका नाम आनन्दसागर जी रक्खा गया । "गणीपद” प्राप्त हुआ। आपके विद्वत्तापूर्ण एवं सारगर्भित आफ्ने एक लाख रुपयों की लागत से सूरत में सेठ देवचन्द
सम्वत् १९६० में आपको " पम्पास " एवं भाषणों ने जैन जनता को प्रभावित किया । लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फन्ट कायम कराया । बम्बई में जैन जनता को संगठित करने के समय भाष
"सागरानन्द" के नाम से मशहूर हुए।
सम्वत् १९७४ में आपको आचार्य बिजयकमलसूरिजी मे
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