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श्रीसवाल जाति का इतिहास :
वे सम्राट के निकट पधारे कर उन्हें दर्शन दें। इस पर गुजरात के सूबे साहिबखान ने अहमदाबाद के खास - खास श्रावकों को बुलवाया और उनसे सम्राट अकबर के फरमान की बात कही । इस पर उक्त श्रावक- गण आचार्य्यजी के पास उपस्थित हुए और बड़े विनीतभाव से सम्राट के निवेदन की बात उनसे निवेदन की
आचाय हीरविजयसूरि बड़े दूरदर्शी थे । उन्होंने सम्राट् अकबर जैसे महाम् पुरुष को उपदेश देने में जैन धर्म का गौरव समझा और वे सम्राट् से मिलने के लिये रवाना हो गये ।
आचार्य्यवर बिहार करते हुए मही नदी उतर कर अहमदाबाद पहुँचे। सिताबखान ने आपको अत्यन्त आदर के साथ बुलाया और अकबर के फर्मान का आपके सन्मुख जिक्र किया। उसमे यह भी कहा द्रव्य, रथ, हाथी, अश्व, पालकी आदि सब आपके लिये तैयार हैं। जो आप आज्ञा करें वह मैं करने के लिये प्रस्तुत हूँ। इस पर आचार्य देव ने जवाब दिया कि जैन साधु का आदर्श संसार की तमाम वस्तुओं से मोह हटा कर बीतराग होकर आत्मकल्याण करना है। उन्हें सांसारिक वैभव से कोई सरोकार नहीं। इस बात का उक्त सूबेदार पर बहुत असर पड़ा। इसके बाद सूरीश्वर श्री हीरविजयजी अकबर के पास जाने के लिए फतहपुर सीकरी को रवाना हो गये। क्योंकि इस समय अकबर का मुकाम यहीं पर था । इस बिहार में आपके साथ बादशाह के कुछ दून भी थे। बीसलपुर, महिसाणा, पाटन, बरड़ी, सिहपुर - आदि कई स्थानों में बिहार करते हुए आप सरोतरा नामक गाँव में आये । वहाँ भीलों के मुखिया सहदार अर्जुन ने आपले उपदेश ग्रहण किया और उसने अपने सब भील साथियों में अहिंसा धर्म का प्रचार किया। इस स्थान में पर्युषण करने के बाद आप आबू पर वहाँ के सुप्रसिद्ध मन्दिर के दर्शन करने के लिये पधारे। वहाँ से आप शिवपुरी (सिरोही) आये । आइने अकबरी के प्रथम भाग में लिखा है कि वहां के राजा सुरभाग ने आपका बड़े धूमधाम के साथ स्वागत किया। जगद्गुरु काव्य भी इस बात की पुष्टि करता है । वहाँ से आप सादड़ी पधारे और राणकपुर की यात्रा कर मेड़ता चले आये। मेड़ता पर उस समय मुसलमानों का अधिकार था। वहाँ के सादिल सुलतान ने आपका बड़ा आदरातिथ्य किया । इसके बाद आप फलौदी पार्श्वनाथ के दर्शन करने के लिये गये । इस स्थान पर आपको विमलहर्ष उपाध्याय नामक सज्जन मिले जिन्हें आपके पास सम्राट अकबर ने भेजा था ।
विमलहप ने लौट कर बादशाह अकबर से सूरिजी के प्रयाण का समाचार निवेदन किया । इस पर बादशाह की भाशा से स्थान सिंह आदि सज्जनों ने बड़े समारोह के साथ सूरिजी का स्वागत किया और ठाठ वाठ के साथ उन्हें फतेहपुर सीकरी ले गये । आचार्य श्री संवत् १६३९ के जेठ वदी १३ को
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