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बोसवाल जाति का इतिहास
भापकी विद्वता देख कर खम्मात के तत्कालीन राजा ने आप को 'बाल सरस्वती' की उपाधि प्रदान की थी। भापके समय में वि० संवत् १५.८ में स्थान म्वासी मत की उत्पत्ति हुई जिसका वर्णन हम भगले किसी अध्याय में करेंगे। "हेमविमलसरि
भाप भी बड़े विद्वान जैनी साधु थे। आपके समय में जैन साधुओं का आधार शिथिल हो गया था। पर आप के उपदेश से बहुत से साधुओं ने शुद्ध मुनि व्रत को फिर से स्वीकार किया।
भानन्दविमलसूरि
आप श्री हेम विमसूरि शिष्य थे। आप ने स्थान २ पर उपदेश देकर शुद्ध जैन धर्म अगर किया। भाप ने तूणीसिंह नामक एक महान् धनवान को जैन धर्म में. दीक्षित किया । सोमप्रभु सूरिजी ने जल की तंति के कारण जैसलमेर आदि स्थानों में साधुओं का विहार करना बन्द कर दिया था। मापने उसे फिर शुरू करवा दिया। माप के बाद महोपाध्याय श्री विद्यासागरगगी आदि जैन मुनि हुए जिनके समय में कोई विशेष घटमा न हुई। हरिविजयसूरि
मध्ययुग के जैनाचार्यों में श्री हीरविजयसूरि का आसन अत्यन्त ऊँचा है। माप असाधारण प्रतिभाशाली, अपूर्व विद्वान और अपने समय के अद्वितीय कवि थे। अपने समय में भाप की कीर्ति सारे भारतवर्ष में फैल रही थी। भाप अकि वेज और अगाध पाण्डित्य का प्रभाव न केवल जैनों पर परन् मुगल सम्राट तयार पड़ा था। मापकी तेजस्विता से तत्कालीन मुगल सम्राट चकाचौंध हो गये थे।
इस अलौकिक महापुरुष का जन्म पालणपुर के कुरा नामक ओसवाल के यहाँ पर संवत् १५ में हुआ था। आपकी माता का नाम नाथीबाई था। जब भाप तेरह वर्ष के थे तब आप के माता पिता का देहान्त हो गया था। * एक समय आप पट्टन में अपनी बहन के यहाँ गये हुए थे कि तपगच्छ के मुनि विजयदानसूरि के उपदेश से आपने संसार त्यागने का निश्चय किया। इस पर आपकी बहन ने भाप
• जगद्गुरू काव्य में लिखा है कि इनके माता पिता इनके दीक्षा लेने तक विद्यमान थे। दीघा के समय माप सकटुम्ब पाटण में थे। आपने अपने माता पिता की आशा से दीचा ली।