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श्रीसवाल जाति का इतिहास
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यात्रा की थी उस समय यह काव्य रचा गया था। वस्तुपाल ने अपने बनाये इन्द्र मण्डप के एक पत्थर पर इस काव्य को खुदवाया था। इसमें काव्यस्व के &चे गुणों के साथ २ बहुत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ज्ञान भी भरा हुआ था। इसमें बस्तुगल की वंशावली के साथ २ चालुक्य वंश के राजाओं का वर्णन भी दिया गया है। इसके अतिरिक्त उक्त सूरिजी ने और भी बड़े २ ग्रंथ रचे हैं। आपने धर्म शर्मा अभ्युदय
और संघाधिपति चरित्र नामक महाकाव्य रचे। आरंभ सिद्धि नामक आपने ज्योतिष शास्त्र का भी एकग्रंथ बनाया। इसके अतिरिक्त संस्कृत नेमिनाथ चरित्र भी आप की कृति का फल है ।
प्रभाचन्द्रसूरि
आप विक्रम संवत् १५३४ में विद्यमान थे। आपने प्रभाविक चरित्र नाम का एक अत्युत्तमः ऐतिहासिक ग्रंथ लिखा है।
बजसेनसूरि.
आप तपैगच्छ की नागरिष शाखा के श्री हेमतिलक सूरि के शिष्य थे। आपने महेश्वर सूरिजी को मुनिचन्द्र सूरिजी कृत, "आवश्यक सप्तती" की टीका रचाने में बड़ी मदद की थी। भापने सीहड़ नामक एक जैन मंत्री के द्वारा बादशाह अलाउद्दीन से मुलाकात की थी और उस पर प्रभाव डाल कर जैन शासन के अधिकार के लिए आपने बहुत से फरमान लिये थे।
जिनप्रभुरि .
आप खरतरगच्छ के स्थापक श्री जिनसिंहसूरिजी के शिष्य थे । आपने संवत् १९६५ में अयोध्या में भयहर स्तोत्र और नंदी शेण कृत "अजित शांति स्तव" पर टीका रची। इसके अतिरिक्त आप ने सूरिमंत्र प्रदेश विवरण, तीर्थ कल्प, पंच परमेष्टिस्तव, सिद्धान्तागमस्तव, द्वया श्रेय महाकाव्य आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनका यह नियम था कि जब तक वे एक नवीन स्तोत्र नहीं बना लेते थे तब तक आहार पागी नहीं करते थे। उनकी कवित्व शक्ति तथा विद्वता अद्भुत थी। यह बात उनके ग्रंथों के अवलोकन से स्पष्टतया प्रकट होती है। इसके अतिरिक्त आप ने श्री मल्लिसेणसूरिजी को श्री हेम. चन्द्राचार्य कृत, "अन्य योग व्यवच्छेदिका" नामक ग्रंथ पर टीका रथमे में बड़ी मदद की थी।