________________
श्रीसवाल जाति का इतिहास
स्वम्भात का पार्श्वनाथ का मन्दिर
खम्भात का प्राचीन नाम स्तम्भनपुर है । वहाँ पर पार्श्वनाथ का एक प्राचीन मन्दिर है । उस मंदिर की एक शिला पर एक लेख खुदा हुआ है, जिसे बड़ौदा की सेन्ट्रल लायब्ररी के संस्कृत-साहित्य-विभाग के निरीक्षक स्वर्गीय श्री चिम्मनलाल डायाभाई दलाल एम० ए० ने प्राप्त किया था । उक्त लेख का सारांश इस प्रकार है ।
संवत् १३६६ के साल में जब स्तम्भनपुर ( खम्भात ) में पृथ्वीतल को अपने पराक्रम से गुँजा देनेवाला अल्लाउद्दीन बादशाह का प्रतिनिधि अल्फखान राज्य करता था, उस समय जिन प्रबोधसूरि के शिष्य श्री जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से उकेश ( ओसवाल ) वंशीय शाह जैसल नामक सुश्रावक ने पौषध शाला सहित अजितदेव तीर्थङ्कर का भव्य मंदिर बनवाया । शाह जैसल जैन धर्म का प्रभाविक श्रावक था । उसने बहुत 'से याचकों को विपुल दान देकर उनका दरिद्र नाश किया था। बड़े समारोह के साथ उसने शत्रुंजय, गिरनार आदि तीर्थों की संघ के साथ यात्रा की थी । उसने पट्टन में भगवान शाँतिनाथ का विधि-चैत्य और उसके साथ पौषधशाला बनवाई थी । उसके पिता का नाम शाह केशव था । उसने जैसलमेर में पार्श्वनाथ भगवान का सम्मेद शिखर नामक विधि-चैत्य बनवाया था ।
इसी खम्भात नगर में भगवान कुंथुनाथ का जैन मंदिर है । इसमें एक शिलालेख है, जिसमें कोई साल संवत् नहीं दिया गया । इस शिला लेख में १९ पद्य हैं। पहले पद्य में भगवान ऋषभदेव का स्तवन है। दूसरे और तीसरे में तेइसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति है। चौथे पद्य में सामान्य रूप से सब तोर्थङ्करों की प्रशंसा है। पांचवे और छटे पद्य में चौलुक्य वंश की उत्पत्ति का वर्णन है। सातवें और आठवें पद्य में उक्त वंश के अर्णेराज राजा की प्रशंसा है । और नोवें श्लोक में अर्णेराज की सुलक्षणा देवी नामक रानी का उल्लेख है । दसवें, ग्यारहवें तथा बारहवें पद्य में उनके पुत्र लवणप्रसाद का वर्णन है । तेरहवें श्लोक में उनकी स्त्री मदनदेवी का उल्लेख है। इसके बाद के चार पद्यों में उनके पराक्रमी पुत्र वीर का वर्णन है और अठारहवें श्लोक में उनकी रानी वैजलदेवी का नाम निर्देश किया गया है । उन्नीसवें काव्य में विसलदेव राजा के गुण वर्णित हैं ।
इसी खम्भात नगर में चिंतामणि पार्श्वनाथ का एक प्राचीन मंदिर है। उसमें एक जगह काले पत्थर पर एक लेख खुदा हुआ है जिसका सारांश सुप्रख्यात् पुरातत्वविद् मुनि जिनविजयजी ने इस प्रकार प्रगट किया है।
"प्रारंभ के चार श्लोकों में भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है। पांचवे श्लोक में संवत् 106