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पार्मिक क्षेत्र में प्रोसवाल जाति
मादि कई उष्ण कुण्ड है। इसके अतिरिक्त पहाँ विपुलगिरी, रत्नागिरी, उदयगिरी, स्वर्णगिरी और वैभारगिरी नामक कई पर्वतमालाएँ हैं। इन पर्वतों पर बहुत से जैन मन्दिर बने हुए हैं। बहुत सी मूर्तियां व चरण इधर उधर विराजमान हैं।
___यहाँ के पत्थर पर खुदे हुए विभिन्न लेखों के पढ़ने से ज्ञात होता है कि इस तीर्थ स्थान पर ओसवाल सज्जनों के बनाये हुए कई मन्दिर, प्रतिष्ठा करवाई हुई कई मूर्तियाँ, बिम्ब तथा चरण पादुका भी हैं। इन लेखों में बच्छराजजी, पहसजजी धर्मसिंहजी, बुलाकीदासजी, फतेचन्दजी, जगत सेठ के महल ताबचन्दजी आदि ओसवाल महानुमायों के नाम मिलते हैं । कुण्डलपुर
इस नगर का आधुनिक नाम बदगांव है। जैन शास्त्रों में इस नगर का कई जगह उल्लेख भाया है। भगवान महावीर स्वामी के प्रथम गणधर श्री गोतमस्वामी का यह जन्मस्थान है। नालंद का सुप्रख्यात बौद्ध विश्वविद्यालय इसी के निकट था। इसके चारों तरफ प्राचीन कीर्तियों के चिह विद्यमान हैं। सरकार के पुरातत्व विभाग की ओर से भी इसकी खुदाई हो रही है। आशा है यहां बहुत से महत्व के निशान मिलेंगे। यहां का सब से पुराना शिला लेख संवत् १४. का है। संवत् १६८६ के वैसाख सुदी १५ का एक दूसरा पाषाग पर खदा हुमा लेख है जिससे मालुम होता है कि चोपड़ा गौत्र के ठाकुर विमलदास के पौत्र ठाकुर गोवर्धनदास ने यहाँ गौतम स्वामी के चरणों को प्रतिष्ठित करवाया। इस प्रकार के यहाँ पर और भी लेख हैं। पटना ( पाटलिपुत्र )
हम ऊपर लिख चुके हैं कि राजगृह के राजा श्रेणिक ने चम्पानगरी को अपनी राजधानी बनायो था। कोणिक के पुत्र राजा उदई ने पाटलिपुत्र नामक नवीन नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाई। इसके पश्चात् यहां पर नवनन्द, सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट अशोक आदि बड़े । साम्राज्याधिकारी नृपति हो गये। चाणक्य, उमास्वामी, भद्रबाहु, महागिरी, सहस्थि, वन स्वामी सरीखे महान् पुरुषों ने भी इसी नगर की शोभा को बढ़ाया था । आचार्य श्री स्थूलभद्र स्वामी और सेठ सुदर्शनजी का भी यही स्थान है। यहां का जैन मन्दिर बहुत जीर्ण हो गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह मन्दिर बोसवालों का बनाया आ है।
यहां धातुओं की मूर्तियों पर कई लेख खुदे हुए है। इनमें पहला लेख संवत् १४८६ की बैसाख