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मेसिवाल जाति का इतिहास
संवत् १८५६ की वैसाख सुदी ३ को खरतर गच्छाधिराज श्री जिनलाभसूरि पट्टलिकार ने समस्त श्री संघ के श्रेय के लिये श्री शांतिनाथ जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा की। इसीदिन श्री जिनचन्द्ररि द्वारा वासुपूज्य स्वामी को बिम्ब-प्रतिष्ठा कराई गई। प्रतिष्ठा का प्रबन्ध कराने वाले ओसवाल समाज के गोलेछा गौत्र के कोई सज्जन थे। इस प्रकार इसी तारीख को भगवान विमलनाथ और जिनकुशलरि की पादुकाओं की प्रतिष्ठा की गई।
इस प्रकार और भी विभिन्न तीर्थकरों के बिम्ब और पादुका की प्रतिष्ठा कराये जाने के उल्लेख वहाँ के पत्थर पर खुदे हुए लेखों में पाये जाते हैं। इनमें प्रतिष्ठाचार्य जैन श्वेताम्बर आचार्य थे और प्रतिष्ठा के लिये धन व्यय करने वाले ओसवाल धनिक थे। इन लेखों में दूगड़ सरूपचन्द, करमचन्द, हुलासचन्द, प्रतापसिंह, राय लक्ष्मीपतसिंह वहादुर, राय धनपतसिंह बहादुर तथा कुछ ओसवाल महिलाओं के नाम हैं, जिन्होंने उक्त बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाने में सब से अधिक भाग लिया था। बिम्बों के अतिरिक्त यहाँ की धातु की प्रतिमाओं पर भी कई लेख हैं। संवत् १५०९ के ज्येष्ठ सुदी में साहस नामक एक जैन ओसवाल श्रावक ने श्री नेमिनाथ स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । संवत् १५५१ में ओसवाल वंश के सिंघाड़िया गौत्र के शाह चम्पा, शाह पूजा, शाह काजा, शाह राजा, धन्ना आदि ने श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा पूज्य श्री जिनहर्षसूरि द्वारा करवाई। इस प्रकार यहाँ की मूर्तियों पर और भी कई ओसवाल सज्जनों के नामों का उल्लेख मिलता है। यहाँ के कई मन्दिर भी ओसवाल सज्जनों के बनाये हुए तथा प्रतिष्ठित किये हुए हैं। कहने का अर्थ यह है कि चम्पापुरी के महा तीर्थ राज पर भी सवाल महानुभावों के जैन धर्म प्रेम के चिह्न स्थान २ पर दृष्टि गोचर होते हैं।
मगध देश में राजगृह (राजगिरी ) अत्यन्त प्राचीन नगर है। बीसवें तीर्थकर श्री मुनि वृत्त स्वामी का यह जन्म स्थान बतलाया जाता है। इतना ही नहीं, उक्त तीर्थकर ने यहीं दीक्षा ली थी और यहीं पर वे मोक्ष गामी हुए थे। बाइसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथ के समय में यह जरासंध की राजधानी थी। चोबीसवें तीर्थकर श्री महावीर स्वामी के समय में भी यह नगर संस्कृति और समृद्धि के ऊँचे शिखर पर चढ़ा हुआ था। भगवान बुद्धदेव की भी यह लीला भूमि थी। प्रसेनजित, उनके पुत्र श्रेणिक तथा श्रेणिक पुत्र कोणिक यहाँ के राजा थे। भगवान महावीर स्वामी ने यहाँ पर चौदह चौमासे किये। जम्बू स्वामी, धन्नासेठ तथा शालिभद्रजी आदि बड़े २ विख्यात् पुरुष यहाँ के निवासी थे। यह स्थान बहुत ही रमणीक और नयन मनोहर है। यहाँ पर जो पहाद हैं उनके नीचे ब्रह्म कुण्ड, सूर्यकुण्ड