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________________ श्री फाकाँपुरी तीर्थ जैनियों के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर आज से लगभग २४६० वर्ष पूर्व इस परम पवित्र पावापुरी नगरी में निर्वाण को प्राप्त हुए थे। इसलिये यह स्थान जैनियों का महा पवित्र तीर्थस्थान माना जाता है। यद्यपि इस तीर्थ स्थान को स्थापना ओसवालों की उत्पत्ति के पहले * हो चुकी थी। पर कोई एक हजार वर्ष के पूर्व से इस तीर्थ स्थान का सारा कारोबार श्वेताम्बर मूर्ति पूजक ओसवालों के हाथ में रहता आया है। वे ही इस पवित्र पावापुरी तीर्थ की रक्षा व देख रेख बरावर करते आ रहे हैं। इतना ही नहीं वहाँ पर जितने मंदिर और धर्मशालाएँ हैं उनमें एक भाध को छोड़कर प्रायः सब की प्रतिष्ठा व पुनरूद्वार ओसवालों ने ही करवाये हैं। अब हम श्री पावापुरीजी के विभिन्न जैन मंदिरों का कुछ ऐतहासिक विवेचन करना चाहते हैं जिससे पाठकों को हमारे उक्त कथन की सवाई प्रगट हो जाय। गांवमदिर यह मंदिर पाँच भव्य शिखरों से सुशोभित है। विक्रम संवत् १६९८ की वैसाख सुदी पंचमी सोमवार को खरतरगच्छाचार्य श्री जिनराजसूरिजी की अध्यक्षता में बिहार के श्रीश्वेताम्बर श्री संघ ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा कराई थी। उस समय कमल लाभोपाध्याय एवं पं० लब्धकीर्ति आदि कई विद्वान साधुओं की मण्डली उपस्थित थी कि जिनका उक्त मंदिर में लगी हुई प्रशस्ति में उल्लेख मिलता है। मंदिर की यह प्रशस्ति श्याम रंग की शिला पर बड़े ही सुन्दर अक्षरों में खुदी हुई है। इस प्रशस्ति की लम्बाई १३ फूट और चौड़ाई । फूट है। सुप्रख्यात पुरातत्व विद् बाबू पूरणचन्द नाहर एम० ए० बी० एल ने इस प्रशस्ति का पुनरुद्धार किया और अपने जैन लेख संग्रह भाग प्रथम के पृष्ठ ४६ में उसे प्रकाशित किया । इसके बाद भाप ही ने उक्त प्रशस्ति की शिला को बड़ी सावधानी के साथ वेदी से निकलवा कर मंदिर की दीवार पर स्थापित कर दी। मूल मंदिर के मध्य भाग में मूलनायक श्री महावीरस्वामी की पाषाण मय मनोज्ञ मूर्ति विराजमान है, दाहिने तरफ श्री आदिनाथ की एवं बाई तरफ श्री शांतिनाथ की श्वेत पाषाण की मूर्तियाँ हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ कई धातु की पंच तीथियाँ और छोटी २ मूर्तियाँ खखी हुई हैं। मूल वेदी के दाहिने * जिस समय इस तीर्थस्थान की उत्पत्ति हुई उस समय जैनियों में आज की तरह कोई भेद नहीं थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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