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प्रोसवाल जाति का इतिहास
चंडालिया था। इन्होंने हो, जैसा कि उपर कहा गया है, पाली के नौलखा मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था ।
इन सब लेखों से यह स्पष्टतया प्रतीत होता है कि पाली का नवलखा मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है। मूल में वह महावीरजी का मन्दिर कहगता था पर पीछे से नवलखा नामक कुटुम्ब ने उपका जीर्णोद्धार करवाया, इससे वह नवलखा प्रासाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अन्त में डूंगर, भाखर नामक ओसवाल बन्धुओं ने उसका पुनरुद्धार करवाकर उसमें मूल नायक के रूप में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा पधराई। गोड़ी पार्श्वनाथ का मन्दिर
गोलो पाश्र्वनाथजी का मन्दिर बड़ा ही प्रसिद्ध मन्दिर है । यह मन्दिर तेरहवीं सदी का बना हुआ है। इसकी प्रतिष्ठा करने वाले विजयदेव सूरि नाम के जैनाचार्य थे । मेड़ता नगर निवासी भोस. बाल जाति के कुहाड़ा गौत्र वाले साह हरषा तथा उनकी भार्या जयवन्तदे के पुत्र जसवन्त ने उक्त मूर्ति निर्माण करवाई थी। बेलार के जैन मन्दिर
___ मारवाड़ राज्य के देपूरी शन्त के प्रसिद्ध नगर घाणेराव के पास वेलार नाम का एक गाँव है । वहाँ भगवान आदिनाथ का एक प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर में ५ लेख मिले हैं जो महत्व के हैं। प्रथम लेख संवत् १२६५ के फाल्गुन वदा • का है, उस से मालूम होता है कि धांधलदेव के राज्य के समय में नाणकीय गच्छ के आचार्य शांतिपूरि ने वधिलदे के चैत्य में रामा और गोसा ने रंग मण्डप बनाया। रामा यह धर्कट वंश के ओसवाल श्रावक परिवार के पावं नामक पुरुष का पुत्र था । गोसा अथवा गोसाक यह आसदेव का पुत्र थाया का पुत्र था। मेड़ता के मन्दिर
मेड़ता मारवाड़ का अत्यन्त प्राचीन और प्रख्यात् नगर है। प्राचीन काल में यह नगर अत्यन्त समृद्धिशाली था। अकबर जहांगीर और शाहजहां बादशाहों के राज्य काल में यहां जैन कौम की बहुत
(१, वधिलदे यह वेलार का प्राचीन नाम है।
(२) यह ओसवाल जाति का एक गौत्र है। इस वक्त इस धरकट गौत्र का रूप बदल कर धाकड़ हो गया है। मारवाड़ में इस गौत्र के बहुत से घर है।