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प्रोसवाल जाति का इतिहास
श्री नाडोल तीर्थ
मारवाड़ के गोड़वाद प्रान्त में यह एक प्रसिद्ध ऐतहासिक स्थान है। जैन लोग इसे अपने पंच तीर्थों में शुमार करते हैं। पुराने समय में यह चौहानों का पाट नगर था। इस गाँव में पद्मप्रभु स्वामी का, एक भव्य और सुन्दर मंदिर है। इस मंदिर के गूढ मण्डप के दोनों ओर भगवान नेमिनाथ और भगवान शान्तिनाथ की दो प्रतिमाएँ है। उनके ऊपर संवत् १२१५ की वैसाख सुदी १० का लेख है। इस लेख से यह मालूम होता है कि बीसाड़ा नामक स्थान के मंदिर में जसचन्द्र, जसदेव, जसधवल और जसपाल नामक श्रावकों ने इन मूर्तियों को बनवाई और पद्मचन्द्र गणि के हाथ से इनकी प्रतिष्ठा करवाई।
उक्त मन्दिर के भतिरिक्त वहाँ पर और कई प्राचीन जैन मन्दिर विद्यमान हैं। इन मन्दिरों के शिलालेखों में कई स्थानों पर ओसवाल जाति के बहुत से महानुभावों के नामों का उल्लेख मिलता है। भगवान नेमिनाथ का मन्दिर भी बड़ा प्राचीन तथा सुन्दर बना हुआ है। श्री वरकाणातीर्थ
पह तीर्थ स्थान राणी स्टेशन से २ मील की दूरी पर है। यहां पर भगवान पार्श्वनाथजी का एक बहुत बड़ा और प्राचीन मन्दिर विद्यमान है। इसके अतिरिक्त यहां पर दो धर्मशालाएँ तथा एक श्रीपार्श्वनाथ जैन विद्यालय भी है। श्री सोमेश्वर तर्थि
उक्त तीर्थ स्थान नाडलाई तीर्थस्थान से छः मील की दूरी पर विद्यमान है। यहाँ पर जैनियों के चार मन्दिर हैं जिसमें शांतिनाथजी का मन्दिर सुन्दर, भव्य और अत्यन्त प्राचीन है। इस मन्दिर के अनेक शिलालेखों में मोसवाल जाति के सज्जनों का उल्लेख पाया जाता है । यहां पर कुआ, बगीचा तथा एक विशाल धर्मशाला भी बनी हुई है। . इस तीर्थस्थान के दो मील की दूरी पर घाणेराव नामक गाँव विद्यमान है। इस गाँव में भाठ सुन्दर जिनालय तथा एक धर्मशाला बनी हुई है। श्री मुच्छाला महावीर तीर्थ
यह तीर्थ स्थान घाणेराव से २ मील की दूरी पर स्थित है। इसमें एक बहुत पुराना जैन मन्दिर विद्यमान है। यहां पर एक धर्मशाला भी बनी हुई है।