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________________ श्री पारासन तीर्थ आबू पर्वत से थोड़ी दूरीपर कुम्भारिया मामक एक छोटा सा गाँव बसाहुमा है। इसी का दूसरा नाम आरासन तीर्थ है। इस तीर्थ में जैनियों के ५ बहुत सुन्दर और प्राचीन मन्दिर बने हुए हैं। मंदिरों की कारीगरी और बंधाई बहुत ही ऊँचे दरजे की है। सभी मन्दिर सफेद भारस पत्थर के बने हुए हैं। इस स्थान का पुराना नाम आरासनकर है, जिसका अर्थ आरस की खदान होता है। जैनग्रन्थों को देखने से इस बात का पता तुरन्त लगजाता है कि पहिले इस स्थान पर भारस की बहुत बड़ी खदान थी। सारे गुजरात में मूर्ति निर्माण के लिये यहीं से पत्थर जाता था। दानवीर समराशाह ने भी शत्रुजय तीर्थ का पुनरुद्धार करते समय यहीं से भारस की फखही मंगाई थी। विमलशाह, वस्तुपाल, तेजपाल, इत्यादि महान् पुरुषों मे भावू पर्वत के उपर जो अनुपम कारीगरी वाले आरस के मंदिर बनाये हैं, यह सब भारस भी पही का था। सौभाग्य-कान्य से पता चलता है कि तारङ्गा पर्वत पर ईडर के संघपति गोविंद सेठने वहाँ के महामन्दिर में अजितनाथ स्वामी की जो विशाल काय प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी उसकी फलही ही भी यहीं से लेजाई गई थी, मतलब यह कि अधिकांश जिन प्रतिमाएं इसी आरस खान के पत्थरों से बनाई जाती थीं। __आर्कियालोजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इण्डिया सरकल की सन् १९०५।६ की रिपोर्ट में कुम्भारिया के जैन मन्दिरों के सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक लिखा हुआ है। उसका भाव इस प्रकार है। ___ "कुम्भारिया में जैनियों के बहुत सुन्दर मन्दिर बने हुए हैं, जिन की यात्रा करने के लिये प्रति वर्ष बहुत जैनी आते हैं। इन मन्दिरों के सम्बन्ध में जो दंत-कथा प्रचलित है वह इस प्रकार है कि विमल शाह ने ३६० जैन मन्दिर बँधाये थे और इस काम में अम्बिका माता ने उन्हें बहुत दौलत दी थी पीछे जब अम्बिका देवी ने उससे पूछा कि तुमने किसकी मदद से ये देवालय बंधाये तो उत्तर में उसने कहा कि 'मेरे गुरुदेव की कृपा से" देवी ने ३ बार इस प्रश्न को दोहराया, मगर विमलशाह ने तीनों बार वही उत्तर दिया। इस कृतघ्नता से क्रोधित होकर देवी ने उससे कहा कि अगर जीना होतो भाग जा। तब वह एक देवालय के तल घर में घुस गया और आबू पर्वत पर निकल गया। उसके पश्चात् माताजी ने ५ देवालयों को छोड़ कर बाकी सब देवालयों को जला डाला जिनके जले हुए पत्थर अभी भी वहाँ चारों ओर बिखरे हुए नज़र भाते हैं। फारवस साहब का कथन है कि यह घटना किसी ज्वालामुखी पर्वत के फटने से
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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