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________________ धार्मिक क्षेत्र में श्रीसवाल जाति नीचे के भाग में तीन कोष्ट में अष्ट माङ्गलिक खुदे हुए हैं, और मध्य में तीन कोष्टक में नंद्यावर्त्त और स्वस्तिक है । परन्तु इस लेख में कोई संवत् मिति अथवा प्रतिष्ठा करनेवाले आचार्य्यं या करानेवाले श्रावक अथवा खोदनेवाले का नाम अथवा प्रतिष्ठा स्थानादि का उल्लेख नहीं है। * अमरसागर का मंदिर यह स्थान जैसलमेर से पाँच मील की दूरी पर है। यहाँ तीन जैन मंदिर हैं । इनमें से दो सुप्रख्यात् बापना वंशीय सेठों के बनवाये हुए हैं। छोटा मंदिर श्री सवाईरामजी बापना ने संवत् १८९७ में और बड़ा मंदिर श्री सेठ हिम्मतरामजी बापना ने संवत् १९२८ में बनाया था । इन दोनों मंदिरों की प्रतिष्ठा खरतरगच्छाचाय्यं जिनमहेन्द्रसूरिजी के हाथ से हुई है। इनमें से बड़ा मंदिर बहुत ही सुन्दर और • विशाल है। इसके सन्मुख बड़ा ही सुरम्य उद्यान है। इस मंदिर में शिल्प कला का बड़ा ही सुन्दर काम हुआ है। यह देखकर सचमुच बढ़ा आश्चर्म्य होता है कि ऐसी विशाल मरुभूमि में मकराने के पत्थर पर भारतीय शिपका का कितना बढ़िया काम हुआ है । इनके अतिरिक्त जैसलमेर के पास देवी कोट, महासर आदि स्थानों में भी छोटे मोटे जैन मंदिर हैं। वहाँ का दादाजी का स्थान भी ऐतिहासिक है । जैसलमेर के जैन मंदिर और शिल्पकला हमने गत पृष्ठों में जैसलमेर के विविध ऐतिहासिक जैन मंदिरों और शिलालेखों का विवेचन किया है । अब हम इन मंदिरों की शिल्पकला के सम्बन्ध में भी दो शब्द लिखना आवश्यक समझते हैं । कुछ शिल्पकला विशारदों ने इन मंदिरों की अपूर्व कारीगरी की बड़ी प्रशंसा की है। पुरातत्व विषयक सुप्रयात् त्रैमासिक पत्रिका की ५ वीं जिल्द के पृष्ट ८२-८३ में जैसलमेर के जैन मंदिरों और वहाँ के श्रीमान् लोगों की रमणीय अट्टालिकाओं की प्रशंसा में एक विद्वत्तापूर्ण लेख प्रकाशित हुआ है। जैसलमेर के स्टेट इञ्जीनी र महोदय ने हाल ही में स्थापत्य शिल्प नामक प्रबंध प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने वहाँ की शिल्प & Jain Inscriptions Jaisalmer ( By B. Puranchandra Ji Nahar M.A. B. L.) Page 177. १५१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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