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धार्मिक क्षेत्र में ओसवाल जाति इन सेठों के पूर्वजों की तीर्थ यात्राओं का साल सम्बत् सहित उल्लेख है। इसमें खरवर गच्छ के आचार्य निन कुशल सूरि से लगाकर जिनराज और जिनवर्द्धन सूरि तक की पहावली भी दी गई है।
श्री सम्भवनाथजी का मंदिर
यह भी एक ऐतिहासिक मंदिर है। सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री जिनभद्रसूरि के उपदेश से संवत् १७९४ में ओसवाल वंश के चौपड़ा गौत्रीय शाह हेमराज ने इस मंदिर को बनवाना आरंभ किया । आप हो ने उसी वर्ष बड़ी धूमधाम के साथ इसकी प्रतिष्ठा करवाई। इस मंदिर की ३०० मूर्तियों की प्रतिष्ठा उक्त श्री जिनभद्रसूरिजी के हाथ से हुई थी और जैसलमेर के तत्कालीन नरेश महारावल बेरीसालजी स्वयं प्रतिष्ठा के शुभ अक्सर पर उपस्थित रहते थे।
इस मंदिर में पीले पाषाण में खुदा हुआ तपपट्टिका का एक विशाल शिला लेख रक्खा हुआ है। यह कुछ ऊपर की तरफ से टूटा हुआ है। इसकी लम्बाई र फुट १० इंच और चौड़ाई । फुट १०३ इंच है। इसमें पाएँ तरफ प्रथम १४ तीर्थहरों के व्यवन, जन्म, दीक्षा और, ज्ञान चार कल्याणक की तिथियाँ कार्तिक बदी से आश्विन सुदी तक महीने के हिसाब से खुदी हुई है। इसके बाद महीनेवार के हिसाब से तीर्थकरों के मोक्ष कल्याणक की तिथियाँ भी दी गई हैं । दाहिनी तरफ प्रथम छः सके कोडे. बने हुए हैं तथा इनके नियमादि खुदे हुए हैं। इसके नीचे वज्र मध्य और यव मध्य तपों के नकशे हैं। एक तरफ भी महावीर तप का कोठा भी खुदा है । इन सब के नीचे दो अंशों में लेख हैं।
इस मंदिर के एक दूसरे शिला लेख में जैसलमेर नगर और उसके यदुवंशी राजाओं की बड़ी तारीफ की गई है। इसमें उक्त राज्य वंश के महारावल जयसिंहजी तक की वंशावली भी दी गई है। इसके अतिरिक्त यहाँ के शिला लेखों में श्री जिनभद्ररि के चरित्र और गुणों की बहुत प्रशंसा की गई है। कहा गया है कि उनके उपदेश से उनके स्थान पर जगह २ मंदिर बनवाये गये; अनेक स्थानों में मूर्तियाँ स्थापित की गई और कई स्थानों में ज्ञान भण्डार प्रस्थापित किये गये। तत्कालीन जैसलमेर नरेश महारवल बेरीसिंहजी द्वारा उक्त आचार्य श्री जिमभद्रसूरि के पैर पूजे जाने का भी उल्लेख है।
____ श्री जिन सुखसूरिजी के मतानुसार इस मंदिर की मूर्तियों की संख्या ५५३ है । पर भी वृद्धिरत्नजी इस संख्या को १०१ बतलाते हैं।