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धार्मिक क्षेत्र में सवाल जाति
चारों तरफ छोटे २ कई एक जिनालय हैं। इस मंदिर में मुख्य मूर्ति ऋषभदेव की है जिसकी दोनों तरफ एक २ खड़ी हुई मूर्त्ति है। और भी यहाँ पर पीतल तथा पाषाण की मूर्तियाँ हैं जो सब पीछे की बनी हुई हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर छोटे २ जिनालय बने हुए हैं जिनमें भिन्न २ समय पर भिन्न २ लोगों ने मूर्तियाँ स्थापित की थीं, ऐसा उन मूर्तियों पर अंकित किये हुए लेखों से प्रतीत होता है। मंदिर के सम्मुख हस्तिशाला बनी हुई है जिसमें दर्वाजे के सामने अश्वारूढ़ विमलशाह की पत्थर की मूर्ति है । हस्तिशाला में पत्थर के बने हुए दस हाथी हैं जिनमें से ६ विक्रम संवत् १२०५ की फाल्गुन सुदी १० के दिन नैठक, आनन्दक्, पृथ्वीपाल, धीरक्, लहरक् और मीमक नाम के पुरुषों ने बनवा कर यहाँ रक्खे थे। इनके लेखों में इन सब को महामात्य अर्थात् बड़ा मंत्री लिखा है। बाकी के हाथियों में से एक पंवार ठाकुर जगदेव ने और दूसरा महामात्य धनपाल ने विक्रम संवत् ११३७ की आषाढ़ सुदी ८ को बनाया था । शेष दो हाथियों के लेख के संवत् पढ़ने में नहीं आते ।
हस्तशाला के बाहर चौहान महाराव लूण्डा और लूम्बा के दो लेख हैं। एक लेख विक्रम संवत् १३७२ का व दूसरा १३०३ का है। इन लूम्बा और लूण्डा ने आबू का राज्य परमारों से छीन कर अपने कब्जे में कर लिया था ।
इस अनुपम मंदिर का कुछ हिस्सा मुसलमानों ने तोड डाला था जिसका जीर्णोद्वार लह और बीजद नामक दो साहुकारों ने चौहान राजा तेजसिंह के समय में करवाया है ।
यहाँ पर एक लेख बघेल ( सोलंकी ) राजा सारंगदेव के समय का वि० संवत् १३५० का एक दीवाल में लगा हुआ मिलता है ।
इस मंदिर की कारीगरी की प्रशंसा शब्दों के द्वारा किसी भी प्रकार नहीं हो सकती । स्तम्भ, तोरण, गुम्मज, छत, दरवाजे इत्यादि जहाँ भी कहीं देखा जाय, कारीगरी का कमाल पाया जाता है कर्नल टॉड मे लिखा है कि हिन्दुस्थान भर में कला की दृष्टि से यह मंदिर सर्वोत्तम और ताजमहल के सिवाय
कोई दूसरा मकान इसकी समानता नहीं कर सकता ।
लूणावसही नेमिनाथ का मन्दिर
हुआ है।
उपरोक्त आदिनाथ के मन्दिर के पास ही वह सुप्रसिद्ध लूणावसही नेमिनाथ का मन्दिर बना यह मन्दिर अणहिलपुर पट्टण के निवासी अश्वराज के पुत्र वस्तुपाल और उनके भाई तेजपाल निप्रभुसूरि ने अपनी तीर्थं कल्प नामक पुस्तक में लिखा है कि मुसलमानों ने विमहलशाह भीर तेजपाल के दोनों मंदिरों को तोड़ डाला। वि० सं० १३७८ में इनमें में पहले का उद्धार महणसिंह के पुत्र लल्ल ने और सिंह के पुत्र पैथार ने दूसरे मंदिर का पुनरुद्धार करवाया ।
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