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श्रीसवाल जाति का इतिहास
शाह मानसिंह, राबसिंह, कनकसेन, उग्रसेन, ऋषभदास इत्यादि ने अपने परिवार सहित अपने पिता के आदेशानुसार यह सहस्रकूट तीर्थं बनवाया और अपनी ही प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठित किया । तपागच्छाचार्य श्री हरिविजयसूरि की परम्परा में श्री विनयविजयजी ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई ।
( २ ) यह लेख संवत् १७९१ के बैसाख सुदी ८ का है जो विमलवंशीक में हाथी पोल की ओर जाते हुए दाहिनी ओर लगा हुआ है । ओसवाल जाति के भण्डारी दीपाजी के पुत्र खेतसिंहजी, उनके पुत्र उदयकरणजी, उनके पुत्र भण्डारी रत्नसिंहजी * महामंत्री ने- जिन्होंने कि गुजरात में " अमारी" . का ठिंढोरा पिटवाया - पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की। जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छ के विजयदयासूरि ने की । (३) इसी प्रकार संवत् १७९४ की असाद सुदी १० रविवार को ओसवाल वंश के भण्डारी भानाजी के पुत्र भण्डारी नारायणजी, उनके पुत्र भण्डारी ताराचन्दजी, उनके पुत्र भण्डारी रूपचन्दजी उनके पुत्र भण्डारी शिवचंदजी, उनके पुत्र भण्डारी हरकचंदजी ने यह देवालय बनाया और पर्श्वनाथ की एक प्रतिमा अर्पण की तथा खरतर गच्छ के पंडित देवचन्द्रजी ने उसकी प्रतिष्ठा की । यह लेख शत्रुंजय पहाड़ के छीपावली ट्रैक के एक देवालय के बाहर दक्षिण दिशा की दीवाल पर कोरा हुआ है ।
(४) संवत् १८८५ की बैशाख सुदी ३ के दिन श्राविका गुलाब बहन के कहने पर बालूचर ( मुर्शिदाबाद ) निवासी दूगड़ गौत्रीय सा. बोहित्थजी के पौत्र बाबू किशनचंदजी और बाबू हर्षचंदजी ने पुण्डरीक देवालय से दक्षिण की ओर एक चन्द्रप्रभु स्वामी का छोटा देवालय बनाया जिसकी प्रतिष्ठा खरतर गच्छाचार्य श्रीजिनहर्षसूरि ने करवाई ।
(५) संवत् १८८६ की माघ सुदी ५ को राजनगर वासी ओसवाल जाति के सेठ वस्त्रसबंद खुशालचंद के पौत्र नगिनदास की पत्नी ने अपने पति की शुभ कामना से प्रेरित हो हेमाभाई की टुंक पर एक देवालय और चन्द्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा अर्पण की जिसकी प्रतिष्ठा सागरगच्छ के शान्तिसागर सूरिजी ने करवाई ।
(६) संवत् १८८७ की बैशाख सुदी १३ को अजमेर निवासी ओसवाल जाति के लूणिया गौत्रीय साह तिलोकचंदजी के पुत्र हिम्मतरायजी तथा उनके पुत्र गजमलजी ने एक देवालय खरतश्वासी टुंक के बाहर उत्तर पूर्व में बनाया तथा कुन्यनाथ की एक प्रतिमा अर्पण की इसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के भट्टारक जिन इर्षसूरि के द्वारा की गई ।
* भण्डारी रत्नसिंह ईसवी सन् १७३३ से १७३७ तक गुजरात के सूवा रहे थे । ये महान् योद्धा और कुशल राजनीतिज्ञ थे । महाराजा अभयसिंह के ये अत्यन्त विश्वास और बाहोश प्रधान थे 1
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