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________________ दस्साण श्रार गुलगुलिया . राजजी तथा कोड़ामलजी और मुलतानचन्दजी के भेरोंदानजी नामक पुत्र हुए। सेठ चौथमलजी १० साक की वय में संवत् १९२४ में कलकत्ता गये । आपने अपनी दुकान के व्यापार व सम्मान को बहुत बढ़ाया । संवत् १९६९ से सेठ दुलीचन्दजी का भाग मुलतानचन्दजी से अलग हो गया, तब से दुलीचन्दजी अपने भाइयों के साथ कारबार करने लगे । इसी साल आप अपनी दुकान का काम अपने भाइयों के जिम्मे छोड़ सरदारशहर में आ गये एवं धार्मिक जीवन बिताते हुए संवत् १९८६ में स्वर्ग वासी हुए। आपने उपवास त्याग और तपस्या के बड़े २ कार्य्यं किये। अपनी पत्नी के साथ ३१ दिनों के उपवास किये । अपने जीवन के अन्तिम ५ सालों में आप केवल ८ वस्तुओं का उपयोग करते थे । संवत् १९७५ में सेठ दुलीचन्दजी के सब भ्राताओं का कारबार अलग २ हो गया। सेठ दुलीचन्दजी के संतोषचन्दजी, धनराजजी, बरदीचन्दजी, नथमलजी, चंदनमलजी, सदासुखजी एवं कुशलचन्दजी नामक ७ पुत्र हुए। इनमें सेठ संतोषचन्दजी को छोड़ कर शेष सब भाई मौजूद हैं। सेठ संतोषचन्दजी ने इस फर्म पर इम्पोर्ट व्यापार भारंभ किया । आप बुद्धिमान् एवं व्यापार चतुर पुरुष थे। आप संवत् १९७४ में स्वर्ग वासी हुए । आपके पुत्र मोतीलालजी एवं इन्द्रचन्दजी हैं। आपके छोटे भ्राता सेठ धनराजजी ने संवत् १९७५ में श्री जैन तेरापंथी सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण की है। इस समय सेठ " चौथमल दुलीचन्द" फर्म के मालिक सेठ मोतीलालजी, इन्द्रचन्दजी, नथमलजी, चंदनमलजी, कुशलचन्दजी एवं सेठ कोड़ामलजी के पुत्र रिधकरणजी हैं । इन भाइयों में मोतीलालजी, इन्द्र चन्दजी तथा रिधकरणजी फर्म के प्रधान संचालक हैं। आप सज्जनों के हाथों से व्यापार की वृद्धि हुई है। आप बंधुओं के साथ अन्य भाई भी व्यापार में सहयोग देते हैं। सेठ मोतीलालजी समझदार पुरुष हैं । एवं इस परिवार में सब से बड़े हैं। आपके पुत्र श्री शुभकरणजी को उनके मामा सुजानगढ़ निवासी सेठ हजारीमलजी रामपुरिया ने अपनी सम्पत्ति प्रदान की है। आप होनहार युवक 1 इस समय आप लोगों के यहाँ कलकत्ते के मनोहरदास कॅटला और केशोराम कटला में देशी विलायती कपड़े का इम्पोर्ट, व देशी मिलों के कपड़े की कमीशन सेलिंग एवं बैंकिंग तथा जूट का व्यापार होता है। इसके अलावा फारविसगंज ( बंगाल ) में जूट और जमीदारी का काम होता है । यह परिवार सरदारशहर के ओसवाल समाज में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है । • सेठ रावतमल प्रेमसुख गुलगुलिया, देशनोक ( बीकानेर ) इस परिवार का मूल निवासस्थान नाल ( बीकानेर ) था । वहाँ से गुलगुलिया रामसिंहजी के पुत्र पीरदान की तथा रावतमलजी संवत् १९२५ में देशनोक आये, तथा इन बन्धुओं ने यहाँ अपना स्थाई निवास बनाया । संवत् १९३६ में सेठ पीरदानजी सिलहट गये और संवत् १९४२ में आपने मोलवी बाज़ार ( सिलहट ) में दुकान खोली । २ साल बाद सेठ रावतमलजी भी मोलवी बाज़ार आगये । सं० १९४७ में इस फर्म की एक ब्रांच श्रीमङ्गल में भी खोली गईं। इन दोनों दुकानों पर "पीरदान रावत मल" के नाम से व्यापार होता था । सम्वत् १९६५ में दोनों बन्धुओं का कारबार अलग २ होगया । तब से मोलवी बाजार की दुकान सेठ रावतमलजी के भाग में एवं श्रीमंगल की दुकान पीरदानजी के भाग में भाई । एवं इन दुकानों पर पुराने नाम से ही व्यापार चालू रहा । सम्वत् १९७८ में सेठ पीरदानजी स्वर्गवासी ६८७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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