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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व महाराणा उदयसिंहजी मे आपका बड़ा सस्कार किया । वहाँ से रवाना होकर जगह २ सम्मान पाते हुए भाप सानंद बीकानेर पहुँच गये । आपके सयवहार से राव कल्याणासिंहजी बड़े प्रसन्न हुए। राव रायसिंहजी और मेहता करमचन्द राव कल्याणसिंहजी के पश्चात् राव रापसिंहजी बीकानेर के राजसिंहासन पर विराजे । कहने की आवश्यकता नहीं कि आपके समय में भी ओसवाल मुत्सुदियों का प्राधान्य रहा। आपने मेहता संग्रामसिंहजी के पुत्र करमचन्दजी को अपना प्रधान नियुक्त किया। ये करमचन्दजी महान् राजनीतिज्ञ, शासन कुशल, धर्मात्मा और वीर थे। आपके उद्योग से सम्राट अकबर ने राव रायसिंहजी को राजा का खिताब प्रदान किया। इसी समय के लाभग नागपुर से मिर्जा इब्राहिम ससैन्य बीकानेर की सीमा पर आ पहुंचा। जब यह खबर बच्छावत करमचन्दजी को लगी तब वे भी अपनी फौजों के साथ उसके मुकाबिले के लिये चल पड़े। दोनों में युव हुआ और विजय की माला मेहता करमचन्दजी के गले में पड़ी । इसके कुछ समय बाव आफ्ने मुगल सम्राट अकबर की ओर से गुजरात पर चढ़ाई की और वहाँ के शासक मिर्जा महम्मद हुसेन को हराकर विजय प्राप्त की। मापने कुछ समय के लिये सोजत पर बीकानेर राज्य का झण्डा उड़वाया और जालौर के स्वामी को अपने अधिकार में किया। आपने सिंध देश के बहुत से हिस्से को बीकानेर राज्य में मिलाया और वहाँ की नदी में मच्छियों का मारना बन्द करवाया। आपने इस युद्ध में विलूचियों को हराकर विजय प्राप्त की। इस प्रकार अनेक स्थानों पर आपने अपने अपूर्व वीरव का परिचय दिया। ___ मेहता करमचन्दजी का दिल्ली के तत्कालीन प्रतापी सम्राट अकबर पर भी खूब प्रभाव था। मापने सम्राट अकबर को जैन धर्म के महान् सिद्धान्तों का परिचय करवाया, आप ही ने सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी से सम्राट अकबर की मुलाकात करवाई। सम्राट अकबर ने उक्त आचार्य से जैनधर्म के महान् अहिंसा सिद्धान्त को श्रवण किया। इतना ही नहीं उन्होंने जैनियों के खास पर्वो के उपलक्ष में हिंसा न करने के आदेश सारे साम्राज्य में भेजे । भोसवाल जाति के इतिहास में बच्छावत करमचन्दजी का नाम स्वाक्षरों में लिखने योग्य है।या राजनैतिक दृष्टि से, क्या सैनिक दृष्टि से, क्या धार्मिक और सामाजिक रष्टि से मेहता करमचन्दजी अपना विशेष स्थान रखते हैं। सं० १६३५ में जब भारतवर्ष में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था, उस समय मेहता करमचन्दजी मे हजारों भादमियों का पालन किया था। सैकड़ों कुटुम्बों को आपने साल २ भर तक अब पत्र प्रदान कर उनके दुखों को दूर किया था। इस प्रकार आपने जैन-धर्म के किये भी कई ऐसे महार
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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