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बीकानेर
जोधपुर तथा उदयपुर की तरह बीकानेर के राजनैतिक रंग मंच पर भी ओसवाल मुत्सुद्दियों ने बड़े मार्के के खेल खेले हैं । पाठक यह जानते हैं कि जोधपुर नगर के निर्माता राव जोधाजी के बड़े पुत्र राव atara ने नवीन राज्य स्थापित करने की महान् अभिलाषा से प्रेरित होकर मारवाड़ की तत्कालीन राजधानी मण्डौर से उत्तर की ओर प्रस्थान किया था । उस समय बच्छराजजी नामक एक ओसवाल मुत्सुद्दी इनके साथ थे । ये बच्छराजजी बड़े ही रण कुशल और राजनीति धुरंधर थे । मारवाड़ के राजा राव रणमलजी और राव जोधाजी के पास बड़ी सफलता के साथ ये प्रधानगी का काम कर चुके थे। इससे राव बीकाजी की महान् अभिलाषाओं की पूर्ति में बच्छराजजी के अनुभवों ने बड़ी सहायता दी थी। ईसवी सन् १४८८ में जब चारों ओर विजय प्राप्त कर राव बीकाजी ने राजधानी बीकानेर की नींव डाली थी उसमें उन्हें अपने बीर मंत्री बच्छराजजी से बड़ी सहायता मिली थी। राव बीकाजी ने भी उनकी बड़ी प्रतिष्ठा की और उन्हें वे अपने आत्मीय जन की तरह मानने लगे। इतना ही नहीं, बच्छराजजी के नाम से बच्छासार नामक एक गाँव भी बसाया गया । * जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं मंत्री वच्छराजजी बड़े राजनीतिश, दूरदर्शी और सफल सेनानायक थे । राव बीकाजी की सब लड़ाइयों में आपने अपनी वीरता के बड़े जौहर दिखलाये थे। इस पर रावजी ने प्रसन्न होकर आपको " पर भूमि पंचानन" की उच्च पदवी से विभूषित किया था ।
राव लूनकरनजी और सवाल मुत्सुद्दी
युद्धों में भाग लिया ।
राव बीकाजी के स्वर्गवासी होने के बाद इनके बड़े पुत्र राव लूनकरणजी संवत् १५५१ में बीकानेर के राज्य सिंहासन पर बिराजे । आपने बच्छराजजी के पुत्र करमसीजी को अपना प्रधान नियुक्त किया । करमसीजी अपने पिता की तरह बड़े वीर, धर्मात्मा और राजनीतिज्ञ थे । आपने कई आखिर में नारनौल के लोदी हाजीखाँ के साथ युद्ध कर आप वीरगति को प्राप्त हुए। राव लूनकरणजी की मृत्यु के पश्चात् राव जैतसीजी बीकानेर के सिंहासन पर अधिष्ठित हुए। आपने करमसीजी के छोटे भाई वरसिंहजी बच्छावत को अपना प्रधान बनाया । कहने का अर्थ यह है कि राव वीकाजी और उनके पुत्र तथा
* यह बात बच्छावतों के ख्यात में लिखी है।
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