SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओसवाल जाति का इतिहास रहे। यहाँ से पेंशन होने के बाद आप वर्तमान में सीकर स्टेट में सेटलमेंट ऑफीसर हैं। आपके गोपालसिंह जी, हरकचंदजी तथा सुखचन्दजी नामक तीन पुत्र हैं। इनमें गोपालसिंहजी तो उदयपुर दत्तक गये हैं। शेष दोनों भ्राता घर का कारबार सम्हालते हैं। मेहता उमरावचन्दजी शिवगढ़ ठिकाने के कामदार हैं। इसी प्रकार शालिगरामजी के प्रपौत्र रूपचन्दजी के पुत्र सरूपचंदजी बालक हैं। इनके कुटुम्ब में भी गीजगढ़ ठिकाने का काम रहा। मेहता शेरकरणजी के पुत्र चौथमलजी जनानी ड्योढ़ी के तहसीलदार रहे। इनके पुत्र गोपीचन्दजी विद्यमान हैं। मेहता भागचन्दजी के पुत्र कानचंदजी सेटलमेंट डिपार्टमेंट में तथा नेमीचंदजी के पुत्र प्रभूचन्दजी इम्पीरियल बैंक में खजांची हैं। मेहता जोगीचन्दजी के पौत्र (ज्ञानचन्दजी के पुत्र) गुमानचन्दजी एव केवलचन्दजी के पौत्र (उत्तमचन्दजी के पुत्र) अमरचन्दजी हैं। श्री लक्ष्मीलालजी बोथरा, उटकमंड लक्ष्मीलालजी बोथरा के दादा शिवलालजी तथा पिता केवलचंदजी खिचंद (मारवाड़) में ही निवास करते रहे । केवलचन्दजी संवत् १९५५ में स्वर्गवासी हुए। लक्ष्मीलालजी का जन्म संवत् १९५२ में हुआ। आप संवत् १९६५ में नीलगिरी आये, तथा मिश्रीमलजी वेद फलोदी वालों की भागीदारी में व्यापार आरम्भ किया । इस समय आप ऊटकमंड में "जेठमल मूलचंद एण्ड कम्पनी" नामक फर्म पर बैंकिंग फेंसी गुडस एण्ड जनरल ड्रापर्स विजिनेस करते हैं । एवम् यहाँ के व्यापारिक समाज में यह फर्म अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है। श्री लक्ष्मीलालजी सज्जन व्यक्ति हैं। आपके हाथों से व्यापार को तरक्की मिली है । आपके पुत्र भोमराजजी कामकाज में भाग लेते हैं, तथा रामलालजी और भंवरलाल जी पढ़ते हैं । कोठारी जवाहरचन्दजी दूगड़ का खानदान, नामली __ इस परिवार के पूर्वज अमरसिंहजी दूगड़ ने नागोर से जालोर में अपना निवास बनाया। इनके पश्चात् महेशजी, जेवंतजी, भेरूसिंहजी और पंचाननजी हुए। पंचाननजी ने अनेकों राज्यकीय कार्य किये । कहा जाता है कि इनको “रावराजा बहादुर की पदवी" तथा १२ गाँव जागीर में मिले थे और संवत् १७६५ में इन्हें सोने की सांट, हाथो, कड़ा. मोती और पालकी सिरोपाव इनायत हुआ। सम्बत् १७७१ में विठोर नामक गाँव को एक लड़ाई में आप काम आये। आपके पुत्र बल्लूजी, सोनगरा राजपूत नायक के साथ मालवा की ओर गये, और उनके साथ नामली में आबाद हुए । तथा वहाँ कोटार और कामदारे का काम करने के कारण “कोठारी" कहलाये । बल्लूजी के पश्चात् क्रमशः जीवराजजी और सूर्यमलजी हुए । सूर्यमल जी के स्वर्गवासी होने के समय उनके पुत्र गुलाबचन्दजी, जवाहरचन्दजी तथा हीराचन्दजी छोटे थे। कोठारी हीराचन्दजी ऊँचे दर्जे के कवि थे, कवित्व शक्ति के कारण कई दरवारों में आपको उच्च स्थान मिला था। कोठारी जवाहर चन्दजी-आपका जन्म सम्वत् १८८१ में हुआ । आप बाल्य काल से ही होनहार व्यक्ति थे। नामली ठाकुर के छोटे भ्राता बख्तावरसिंहजी के साथ आप रतलाम दरबार बलवन्तसिंहजी के पास आया जाया करते थे । जब महाराजा बलवन्तसिंहजी के पुत्र भेरूसिंहजी राजगद्दी पर बैठे, तब उन्होंने कोठारी जबाहरचन्दजी को दीवान का सम्मान दिया। तथा इमको कुछ जागीर भी इनायत की। सम्वत् १९२१ में महाराजा के स्वर्गवासी हो जाने पर आप वापस नामली चले गये। सम्बत् १९७३ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर कोठारी हीराचन्दजी के बड़े पुत्र खुमानसिंहजी दत्तक आये । आपके ६६६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy