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ओसवाल जाति का इतिहास
उनके पुत्र दीशजी सादड़ी आये । दीपाजी के पुत्र नवलाजी का जन्म १८९९ में तथा भागाजी का १९११ में हुआ। इन दोनों भाइयों का स्वर्गवास सम्वत् १९६६ में हुआ । नवलाजी के कस्तूरचन्दजी, संतोषचन्द जी, पृथ्वीराजजी तथा दलीचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए । इन भाइयों ने सम्वत् १९४९ में बम्बई में बंगड़ी का व्यापार शुरू किया, तथा इस व्यापार में इतनी उन्नति प्राप्त की, कि आज आप बम्बई में सब से बड़ा चूड़ी के व्यापार करते हैं। आपका आफिस "नवलाजी दीपाजी" के नाम से फोर्ट बम्बई में है, तथा आपके यहाँ चूड़ी का विदेशों से इम्पोर्ट होता है । सेठ कस्तूरचन्दजी सम्बत् १९५४ में तथा दलीचन्दजी १९७५ में स्वर्गवासी हुए । इस समय संतोषचन्दजी तथा पृथ्वीराजजी विद्यमान हैं। संतोषचन्दजी के पुत्र पुखराजजी व्यापार में भाग लेते हैं तथा दलीचन्दजी के पुत्र फूलचन्दजी पढ़ते हैं।
सेठ पृथ्वीराजजी-आप सादड़ी तथा गोड़वाड़ के प्रतिष्ठित सजन हैं। इस समय आप "दयाचन्द धर्मचन्द" की पेढ़ी व न्यात के नौहरे के मेम्बर हैं। आपके परिवार ने राणकपुरजी में ८ हजार रुपये लगाये । पंच तीर्थी के संघ में १७ हजार रुपये व्यय किये । सादड़ी में उपासरा बनवाया। नाडोल तथा बाँदरा के मन्दिरों में कलश चढ़ाने में मदद दी। नाडलाई मन्दिर में चाँदी का पालना चढ़ाया । इसी तरह के कई धार्मिक कार्यों में आप हिस्सा लेते रहते हैं।
सेठ कोजीराम घीसूलाल छजलानी, टिंडिवरम् (मद्रास)
इस खानदान के मालिकों का मूल-निगसस्थान जेतारण (मारवाड़) का है। आप जैन श्वेताम्बर समाज में तेरापंथी आन्नाय को मानने वाले हैं। इस परिवार के श्री घीसूलालजी सबसे पहले सम्वत् १९७२ में टिण्डिवरम् आये और गिरवी के लेन देन की दुकान स्थापित की । घोसूलाजजी बड़े साहसी और व्यापार कुशल पुरुष हैं । आपका जन्म संवत् १९५३ में हुआ। आपके पुत्र बिरदीचन्दजी इस समय दुकान के काम को संभालते हैं । इस फर्म की ओर से दान धर्म और सार्वजनिक कामों में यथाशक्ति सहायता दी जाती है। इस समय इस फर्म पर गिरवी और लेन देन का व्यवसाय होता है।
सेठ चौथमल चाँदमल भूरा, जबलपूर इस गौत्र की उत्पत्ति भणसाली गौत्र से हुई है। इस परिवार का मूल निवास देशनोक (बोकानेर) है । वहाँ से सेठ परशुराम जी भूरा अपने पुत्र चौथमलजी तथा करनीदानजी को लेकर सौ वर्ष पूर्व जबलपुर आये । यहां से करणीदानजी शिवनी चले गये, इस समय उनके परिवार वाले शिवनी में "बहादुरमल लखमीचन्द" के नाम से व्यापार करते हैं। सेठ चौथमलजी भूरा संवत् १९२३ में स्वर्गवासी हुए। आपके चाँदमलजी, मूलचन्दजी, मिलापचन्दजी तथा चुनीलालजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें सेठ चांदमल जी ने १९ साल की आयु में अपने पिताजी के साथ संवत् १९२९ में सराफी की दुकान स्थापित की साथ ही इस फर्म की स्थाई सम्पत्ति को भी आपने खूब बढ़ाया । स्थानीय जैन मन्दिर की व्यवस्था