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________________ ओसवाल जाति का इतिहास वर्तमान में आप इस फर्म के मालिक सेठ माणिकचन्दजी, दुलीचन्दजी व केशरीचन्दजी के पुत्र देवचन्दजी, नेमीचन्दजी, हरिश्चन्दजी तथा सुगनचन्दजी के पुत्र शिखरचन्दजी हैं । आप सब सज्जन फर्म के व्यापार संचालन में भाग लेते हैं। माणिकचन्दजी मालू—आपका जन्म संवत् १९४१ में हुआ । आप समझदार पुरुष हैं । आप वर्तमान में सिवनी में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट, म्युनिसिपल मेम्बर तथा डिस्ट्रिक्ट कौंसिल के मेम्बर हैं । आपके उद्योग से सन् १९३२ में "श्री जैन भोसवाल परस्पर सहायक कोष मध्यदेश व बरार" नामक संस्था की स्थपना हुई है और आप उसके प्रेसिडेंट हैं। इधर दो सालों से आपकी फर्म के द्वारा एक जैन पाठशाला चल रही है। तथा इस समय स्थानीय जैन मन्दिर की व्यवस्था आपके जिम्मे है । आपके छोटे भ्राता दुलीचन्दजी मालू चांदी सोने के जेवर बनाने के कारखाने का संचालन करते हैं। आपके पुत्र ईश्वरचन्दजी इन्द्रचन्द्रजी, घेवरचन्द्रजी, कोमलचन्दजी, यादवचन्द्रजी तथा निहालचन्दजी हैं । इसी तरह दुलीचन्दजी के पुत्र सोभागचन्द्र, ईश्वरचन्दजी के पुत्र खुशालचन्द उत्तमचन्द व नेमीचन्दजी के पुत्र लालचन्द्र प्रेमचन्द हैं। इस परिवार का माणकचन्द्र दुलीचन्द्र के नाम से सराफी व्यवहार होता है । केवलचन्दजी मालू पुत्र भयालालजी अपना स्वतन्त्र कार्य्यं करते हैं। यह खानदान सी० पी० के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठत है । के सेठ कालूराम रतनलाल मालू का परिवार, मद्रास इस खानदान के मालिको का मूल निवास स्थान फलोधी ( मारवाड़ ) का है। इसके पहले आप लोगों का निवासस्थान खिचंद और तिंवरी था । आप लोग स्था० आम्ननाय के सज्जन हैं। इस ख़ानदान में लालचन्दजी हुए, आपके देवीचन्दजी, शोभाचन्दजी तथा खुशालचन्दजी नामक तीन पुत्र थे । देवीचन्दजी मालू के पुत्र कालूरामजी बड़े प्रतापी तथा साहसी व्यक्ति हो गये हैं। आप अपनी हिम्मत और बहादुरी के सहारे देश से पैदल मार्ग द्वारा नागपुर आये और अपने भाई खुशालचन्दजी की फर्म पर काम करने लगे । वहाँ से आप संवत् १८९० में पैदल रास्ते चलकर मद्रास में आये । उस समय मारवाड़ियों की मद्रास में दो तीन दुकानें थीं। सेठ कालुरामजी बड़े धर्मात्मा और जाति प्रेमी पुरुष थे ' आपने अपनी जाति के बहुत से पुरुषों को अपने यहाँ रखकर धंधे से लगाया । आपने मद्रास के बेपारी सूले में श्री चंदाप्रभु जी का संवत् १९३० में एक बड़ा मन्दिर बनवाया । संवत् १९३७ में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके कोई पुत्र न होने से आपने शुगलचन्दजी के पुत्र रतनलालजी को दत्तक लिया रतनलालजी मा का जन्म संवत् १९२० में हुआ। आप अपने जाति भाइयों पर बड़ा प्रेम रखते थे । आपका संवत् १९६१ में स्वर्गवास हो गया। रतनलालजी के कोई संतान न होने से आपने अनोपचन्दजी को दत्तक लिया । अनोपचन्दजी का जन्म संवत् १९५३ का है। आपके पुत्र मनोहरमलजी, पूनमचन्दजी तथा गेंदमलजी हैं । मराठी सेठ हीरचन्द पूनमचन्द मरोठी, दमोह, इस परिवार के पूर्वज सेठ चैनसुखजी तथा उम्मेदचंदजी नामक दो भ्राता अपने मूल निवास ६३४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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