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________________ नागोरी खजांचीमलजी उत्साही तथा समझदार सज्जन हैं । भाप जैन मित्र मंडल के प्रेसीडेंट हैं आपके पुत्र विद्यासागरजी सेकंड ईयर पढ़ते हैं। शेष विद्याप्रकाशजी और विद्याभूषणजी भी पढ़ते हैं । नागोरी सेठ ज्ञानमलजी नागोरी का परिवार, भीलवाड़ा इस परिवार के पूर्व पुरुष पंवार राजपूत सोभाजी को जैनाचाय्यं ने जैनी बनाया। इन्होंने जालोर में एक मन्दिर निर्माण करवाया। इनके वंशज संवत् १६१५ में नागोर आये। यहां से संवत् १६८३ में इस परिवार के प्रसिद्ध व्यक्ति कमलसिंहजी महाराणा जगतसिंहजी के समय में पुर (मेवाड़) में आकर बसे । नागोर से आने के कारण ये लोग नागोरी कहलाये । कनमलसिंहजी के पश्चात् क्रमशः गौड़ीदासजी, भोगीदासजी, और अखैराजजी हुए। ये भीलवाड़ा आकर बसे । इनके बाद क्रमशः माणकचन्द जी जुमजी, केशोरामजी और खूबचन्दजी हुए । आप सब लोग व्यापार कुशल थे। आप लोगों ने फर्म की बहुत तरक्की की। यहाँ तक कि खूबचन्दजी के समय में इस फर्म की १८ शाखाएं हो गई थी। आपके पुत्र न होने से जवानमलजी को दत्तक लिया । आपकी नाबालिगी में भीलवाड़ा एवम् जावद की दुकान रख कर शेष सब बन्द करदी गईं। सेठ जवानमलजी को महाराणाजी की ओर से खातरी के कई पर वाने प्राप्त हुए थे । कहा जाता है कि आपका विवाह रीयां के सेठों के यहां हुआ, उस समय सवा लाख रुपया इस विवाह में खर्च हुआ था । बरात में कई मेवाड़ के प्रसिद्ध २ जागीरदार भी आये थे । रास्ते में महाराणाजी की ओर से पहरा चौकी का पुरा २ प्रबन्ध था। आपका स्वर्गवास होगया। आपके ज्ञानमलजी और नथमलजी नामक दो पुत्र हुए । सेठ ज्ञानमलजी धार्मिक व्यक्ति थे । आपका राज्य में भी अच्छा सम्मान था । यहाँ की पंच पंचायती एवम् जनता में आपका अच्छा मान था । आपके समय में भी फर्म उन्नति पर पहुँची । आपका स्वर्गवास हो गया है । इस समय इस परिवार में सेठ नथमलजी ही बड़े व्यक्ति हैं । आप भी योग्यता पूर्वक फर्म का संचालन कर रहे हैं । आप मिलनसार हैं । आपके पुत्र न होने से चंदनमल जी नागोरी के पुत्र शोभालालजी दत्तक आये हैं । इस समय आप लोग जुमजी केशोराम के नाम से व्यापार कर रहे हैं। भीलवाड़ा में यह फर्म बहुत प्रतिष्ठित मानी जाती है । सेठ ज्ञानमलजी के दोहित्र कु० मगनमलजी कंदकुदाल एम० आई० सी० एस० बचपन से ही इसी परिवार में रह रहे हैं। आप मिलनसार और उत्साही नवयुवक हैं। आजकल आप यहाँ काटन का व्यापार करते हैं। आपके पिताजी वगेरह सब लोग जनकपुरा मदसोर में रहते हैं। वहीं आपका निवास स्थान भी है। आपके दादाजी चम्पालालजी मंदसोर में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आपने हजारों लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की थी । ६१३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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