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कोटा - सेठ कुन्दनमख मगनमल कोचेटा, अचरापाकम् ( मद्रास ). : .
इस परिवार का मूल निवास.जसवंताबाद (मेड़ते के पास) है। वहां से इस परिवार के ' • पूर्वज सेठ रतनचन्दजी कोचेटा लगभग ७० साल पूर्व मुरार (गालियर.) गये, तथा, व्यवहार स्थापित किया। आप बड़े साहसी पुरुष थे। आपने ही व्यापार तथा सम्मान को बढ़ाया। आपके चन्दनमल. जी तथा कुन्दनमलजी नामक २ पुत्र हुए। कोचेटा चन्दनमरूजी का जन्म संवत् १९१३ में हुआ। आप
प्रथम मुरार में कंट्राक्टिङ्ग व्यापार करते थे, तया फिर शिवपुरी में कपड़े का व्यापार चालू किया । आप .. संवत् १९७८ में तथा आपके पुत्र फतेमलजो संवत् १९८९ में स्वर्गवासी हुए। मेठ कुन्दनमलजी कोचेटा
का जन्म संवत् १९४ में हुआ। आप शिवपुरी में कपड़े का व्यापार करते रहे। आप धार्मिक प्रवृति के पुरुष थे। संवत् १९५८ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र मगनमलजी कोचेटा हुऐ।
श्री मगनलालजी कोचेटा-आपका जन्म संवत् १९५६ में हुआ। भाप मेट्रिक तक शिक्षण प्रास कर शिवपुरी में सार्वजनिक कामों में योग देने लगे। भाप यहां के सरस्वती भवन के संचालक, जैन पाठशाला तथा सेवा समिति के सेक्रेटरी थे। वहां की जनता में आप प्रिय व्यक्ति थे। शिवपुरी से आप संवत् १९८. में 'मद्रास आये. तथा वहां आपन जैन सधार लेखमाला प्रकाशित कर जैन
जनता में ज्ञान प्रचार किया, इसी तरह एक जैन पाठशाला स्थापित करवाई। यहां से २ साल बाद .. आप अचरापाकम् (चिंगनपैठ) आवे तथा पहा बिग ब्यापार चालू किया। इस समय आपने
भवाल (मारवाड़) में लोकाशाह जैन विद्यालय का स्थापन किया है। भाप जैन गुरुकुल ब्यावर के मन्त्री और आत्म जागृति कार्यालय के सेक्रेटरी है। तथा मूथा जैन विद्यालय बलूदा के सेक्रेटरी हैं। आप स्थानकवासी समाज के गण्य मान्य व्यक्तियों में हैं। और शिक्षा तथा समाजोन्नति के हरएक कार्य में बहुत बड़ा सहयोग लेते रहते हैं। आपके पुत्र मानन्दमलजी बालक हैं।
सेठ केशवलाल लालचंद कोटा, बोदवड़ ( भुसावल )
इस फर्म का स्थापन सेठ रघुनाथदासजी ने अपने निवासस्थान पीपलाद (जोधपुर) से आकर एक शताब्दि पूर्व बोदवड़ में किया। आपका परिवार स्थानकवासी भाम्नाय का मानने वाला है। भापका स्वर्गवास लगभग-संवत् १९३० में हआ। आपके लालचन्दजी तथा ताराचन्दजी नामक २ पुत्र हए। भाप दोनों भाइयों का जन्म क्रमशः संवत् १९३० तथा ३५ में हुमा।. . . सेठ लालचंदजी कोचेटा-आप बुद्धिमान तथा व्यापार चतुर पुरुष थे, आपने अपनी दुकान की शाखाएं अमलनेर, मलकापुर, खामगांव तथा अकोला में खोली और इन सब स्थानों पर जोरों से आदत का न्यापार कर अपनी दुकान की इज्जत व प्रतिष्ठा को बढ़ाया। संवत् १९८२ में भापका स्वर्गवास हुआ। भापके ३ साल पूर्व आपके छोटे भाई ताराचन्दजी निसंतान स्वर्गवासी हुए । सेठ लालचन्दजी के मूलचन्दजो, मोतीलालजी, हीरालालजी, माणकचन्दजी तथा सोभागचन्दजी नामक पाँच पुत्र हुए।