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________________ ओसवाल जाति का इतिहास की चीज़ है । अतएव उन्होंने तीसरे पत्र से भी किला सौंपना ठीक नहीं समझा । इस पर शाला जालिमसिंह ने जबर्दस्ती से किले पर अधिकार करने का निश्चय किया। उन्होंने मॉडलगढ़ से १८ मील की दूरी पर लुहण्डी स्थान पर एक नया किला बनाना शुरू किया और वे मॉडलगढ़ को हस्तगत करने की युक्ति सोचने लगे। इतना ही नहीं झालाजी ने मेवाड़ के तीन गाँवों पर अधिकार भी कर लिया। जब यह खबर देवीचन्दजी को लगी तो उन्होंने शाला पर फौजी चदाई करके उन्हें भगा दिया। कहने को आवश्यकता नहीं कि एक ओसवाल वीर तथा मुत्सद्दी की कारगुजारी ने एक जबर्दस्त शत्रु के पंजे से मेवाड़ राज्य की रक्षा की। जब यह खबर महाराणा साहब के पास पहुंची तो वे मेहता देवीचन्दजी पर बड़े ही प्रसन्न हुए। उन्होंने मेहताजी को फिर से दीवानगी पर प्रतिष्ठित करने को कहा, पर मेहताजी अपनी पूर्व प्रतिज्ञा से टलना नहीं चाहते थे । इसलिये उन्होंने प्रधानमन्त्री का पद स्वीकार करने में अपनी असमर्थता दिखलाई। हां, इस पद के लिये उन्होंने मेहता रामसिंहजी का नाम सूचित किया। महाराणा साहब ने यह बात स्वीकार करली। मेहता रामसिंहजी को दीवान का उचपद प्रदान कर दिया गया। देवीचन्दजी सुप्रीमकौन्सिलर (प्रधान सलाहकार) का काम करने लगे। इसी समय कई बाहरी झगड़ों के कारण देवीचन्दजी ने यह मुनासिब समझा कि मेवाड़ राज्य का ब्रिटिश सरकार के साथ मैत्री सम्बन्ध हो जाय तो अच्छा है । कहने की आवश्यकता नहीं कि मेवाड़ राज्य भौर ब्रिटिश सरकार के बीच एक सुलह नामा हो गया। इसके बाद जब कर्नल टाँड साहब उदयपुर आये, तब ने देवीचन्दजी से बहुत प्रसन्न हुए और महाराणा से कहकर उनकी जागीर उन्हें दिलवा दी । कहने का तात्पर्य यह है कि मेहता देवीचन्दजी बदे वीर, रणकुशल, और शासन कुशल व्यक्ति थे । मेहता रामसिंहजी मेहता देवीचन्दजी के बाद उदयपुर के दीवान पद को मेहता रामसिंहजी ने सुशोभित किया। रामसिंहजी कार्य दक्ष, बुद्धिशाली और स्वामि भक्त थे । अपने कार्यों से इन्होंने मेवाद में अच्छी ख्याति प्राप्ति की । इन के गुणों पर रीझकर विक्रम संवत् १८७५ में महाराणा भीमसिंहजी ने उन्हें बदनोर जिले का भरना गाँव जागीर में प्रदान किया। उस समय मेवाड़ का शासन प्रवन्ध महाराणा और अंग्रेज सरकार दोनों के हाथ में था महाराणा की भोर से कामदार और ब्रिटिश गवर्नमेण्ट की तरफ से चपरासी नियुक्त रहते थे। इस द्वैध शासन से तंग आकर मेवाड़ की प्रजा ने ब्रिटिश गवर्नमेंट से शिकायत की तब वि. सं. १८८१ में मेवाड़ के तत्कालीन पोलिटिका एजंट कसान कॉप ने शिवकाल घालूण्डिया की जगह मेहता रामसिंह को प्रधान पद पर नियुक्त किया।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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