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मोसवाल जाति का इतिहास
की जेल में गये। राष्ट्रीय की तरह सामाजिक स्प्रिट भी आपमें कूट २ कर भरी है। आपने अपने घर से परदा प्रथा का बहिष्कार कर दिया है। महमदनगर के ओसवाल युवकों में आपका सार्वजनिक जीवन बहुत ही अग्रगण्य है। आपके छोटे भाई मोतीलालजी फिरोदिया का जन्म सन् १९१२ में हुआ । आप इस समय बी० ए० में पढ़ रहे हैं। आप बड़े योग्य और सज्जन हैं। आपसे छोटे भाई हस्तीमलजी हैं। इनकी वय १३ साल की है।
कोरदिया सेठ अनोपचन्द गंभीरमल, बोरदिया उदयपुर । इस परिवार के पूर्व पुरुष सेठ रखबदासजी नाथद्वारा से उदयपुर आये। आपने यहाँ महाराण भीमसिंहजी के राजस्व काल में सम्बत् १८८० से १९०७ तक राज्य में सर्विस की। आपके जिम्मे कोठार का काम था। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर महाराणा ने आपको परवाने भी बख्शे थे। आपके अम्बावजी अनोपचन्दजी, रूपचन्दजी और स्वरूपचन्दजी नामक चार पुत्र हुए । आप लोग अलग अलग हो गये एवम स्वतन्त्र रूप से व्यापार करना प्रारम्भ किया। सेठ अनोपचन्दजी व्यापारिक दिमाग के सज्जन थे। आपने अपनी फर्म की अच्छी उन्नति की। आपके गोकलचन्दजी और गम्भीरमलजी नामक दो पुत्र हुए। यह फर्म सेठ गम्भीरमलजी की है।
सेठ गम्भीरमलजी शांत स्वभाव के व्यापार चतुर पुरुष थे। आपके समय में मी फर्म की बहुत उन्नति हुई। आपका स्वर्गवास हो गया। इस समय आपके पुत्र सेठ फोजमलजी और सेठ जुहारमलजी दोनों भाई फर्म का संचालन करते हैं। आप लोग मिलनसार हैं। सेठ फौजमलजी के सुल्तानसिंहजी
और जीवनसिंहजी नामक पुत्र हैं। सुल्तानसिंहजी योग्य और मिलनसार व्यक्ति हैं। आजकल आप ही फर्म का संचालन भी करते हैं। सेठ जुहारमलजी के मालचन्दजी, छोगालालजी, नेमीचन्दजी, चाँदमलजी
और सूरजमलजी नामक पाँच पुत्र हैं। प्रथम दो व्यापार में योग देते हैं। तीसरे बी० ए० में पढ़ रहे हैं। इस समय आप लोग उपरोक्त नाम से बैकिंग हुंडी चिट्ठी कपास वगैरह का अच्छा व्यापार करते हैं।
डाक्टर कुशलसिंहजी चौधरी, कोठियां (शाहपुरा) का खानदान
इस परिवार के पूर्वज मेवाड़ के हुरड़ा नामक ग्राम में रहते थे । वहाँ से महाराजा उम्मेदसिंहजी शाहपुराधिपति के राजत्वकाल में यह परिवार कोठियाँ आया। उस समय महाराजा के पौत्र कुँवर रणसिंहजी की सेवा चौधरी गजसिंहजी ने विशेष की। इससे प्रसन्न होकर राज्यासीन होने पर रणसिंहजी ने इनको कोठियाँ में कई सम्मान बख्शे। उसके अनुसार वसंत, होली, शीतलाअष्टमी, रक्षाबन्धन, दशहरा, व गणगोर के त्यौहारों पर गांव के पटेल पंच 'चौधरीजी' के मकान पर आते हैं, तथा सदा से बंधे हुए दरतूरों का पालन करते हैं । होली के एहड़े में दमामी लोग किले में दरबार की पीढ़ियों के साथ चौधरीजी की पीढ़ियां गाते