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संचेती
. सेठ हणुतमल मोतीलाल संचेती, लोणार ..
यह परिवार बवायचा (किशनगद के समीप) का निवासी है। इस परिवार के पूर्वज सेठ खुनाशमलजी लगभग संवत् १९०५ में व्याणर के लिये लोनार भाये। भापके इणुतमलजी, हीरालालजी तथा चुनीलालजी नामक ३ पुत्र हुए । संवत् १९५३ के करीब इन तीनों भाइयों का व्यापार अलग अलग हुआ ।
सेठ हणुतमलजी का परिवार-आपका स्वर्गवास संवत् १९३० में होगया। आपके मोतीलाल जी तथा पूनमचन्दजी नामक दो पुत्र हुए, इनमें पुनमचन्दजी, होरालालजी के नाम पर दत्तक गये।
सेठ मोतीललाजी संचेती-आप इस परिवार में बहुत प्रतापी पुरुषहए। भापका जन्म. संवत् १९२० में हुभा । भाप मास पास की पंचायती में नामांकित पुरुष तथा लोनार की जनता के प्रिय व्यक्ति थे। संवत् १९४७ में बुलढाना रिस्ट्रिक्ट के कुलमी मुसलमान तथा मरहठा लोगों ने मिल कर मारवाड़ी जाति के विरुद्ध विद्रोह उठाया। तथा उन्होंने २० गांवों में मारवादियों के घर खरे, बहिये जला दी, तथा घरों में भाग लगा दी। इस प्रकार उनका दल उत्तरोतर बढ़ता गया। जब इस दल बढ़ते २ मारवादियों की सबसे बड़ी और धनिक बस्ती लोनार को लूटने का नोटिस निकाला । तब लोनार की मारवाड़ी जनता ने बुलढाना डिस्ट्रिक्ट के कमिश्नर व माफीसरों से अपने बचाव की प्रार्थना की। लेकिन उनकी ओर से जल्दी कोई उचित प्रबन्ध न होते देख खेठ मोतीलालजी संचेती ने सब लोगों को अपनी रक्षा स्वयं करने के लिये उत्साहित किया, मापने ३०० सशस्त व्यक्ति अपने मोहल्लों की रक्षार्थ तयार किये, तथा तमाम पुरुष एवं स्त्रियों को हिम्मत पूर्वक हमले का मुस्तेदी से सामना करने के लिये हाडस बंधाया। जब ता० २३ । १२ । ३० को लटने वाली जनता का दल लोनार के समीप पहुंचा, तो उन्हें पता लगा कि इन लोगों ने पक्का जामा कर रक्खा है, जिससे वे लोग वापस होगये, पीछे से सरकार की भी मदद पहुंच गई जिससे यह बढ़ती हुई अग्नि, जो सारे बरार में फैलने वाली थी, यहीं शांत होगई।
लोनार के "धारा" नामक अविराम जलाप्रपात पर हिन्दू सियों तथा पुरुषों के स्नानादि धार्मिक कृत्यों में जब मुस्लिम जमता अनुचित हस्तक्षेप करने लगी, उस समय आपने ३ वर्षों तक अपने व्यय से धारा नामक स्थान पर बोग्य अधिकार पाने के लिए लड़ाई दी। इसी बीच बाजे का मामला बड़ा हुभा। इन तमाम बातों से चन्द मुसलमानों ने भाप पर हमला किया, जिससे भापके सिरमें २१ घाव लगे। उस समय हजारों भादमी आपके प्रति हमदर्दी तथा प्रेम प्रदर्शित करने के लिये अस्पताल में एकत्रित होगये, तथा उन्होंने दंगा करने की ठानकी। लेकिन मापने उन्हें सांत्वना देकर रोका। इस प्रकार जब हिन्दू मुसलमानों की यह आपसी रंजिश बहुत बढ़ गई, तब सरकार ने बीच में पड़कर 'धारा' तथा बाजे के प्रश्न को सुलझाया। दंगे के बाद सवा साल तक सेठ मोतीलालजी बीमार रहे। और मिती अपाद बदी संवत् १९४९ को इस मरवीर का स्वर्गवास हुना। भापके सम्मान स्वरूप लोनार का बाजार बन्द रक्खा गया था। महाराष्ट्र, प्रजापत्र व केशरी नामक पत्रों ने भापके स्वर्गवास के समा. चार लम्बे कालमों में प्रकाशित किये थे। सेठ मोतीलालजी लोनार के तमाम सार्वजनिक कामों में उदा. रता पूर्वक भाग लेते थे। आपने 'धार' के समीप एक धर्मशाला बनवाई। स्थानीय अठवाडे पाजार में
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