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राजनैतिक और सैनिक महत्व
राज्य की जिम्मेवारी को ग्रहण करके उसे अन्त तक निभा ले जाने के उदाहरण इतिहास में बहुत कम मिलते हैं। मोतीरामजी बालिया
महाराणा अरिसिंहजी के समय में ओसवाल जाति के बोल्या वंश के साहा मोतीरामजी भी प्रधान रहे । ये सुप्रसिद्ध रंगाजी के वंशज थे, जो कि महाराणा अमरसिंहजी ( बड़े) और कर्णसिंहजी के समय में प्रधान के पद पर रहे थे, इन्हीं रंगाजी ने बादशाह जहाँगीर और अमरसिंहजी के बीच समझौता करवाकर मेवाड़ से बादशाही थाना उठवाया था। महाराणा साहब ने इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर हाथी पालकी का सम्मान और चार गाँव की जागीर ( मेवदा; काणोली, मानपुरा भी जामुणियो ) का पट्टा इन्हें बक्षा था। उदयपुर की सुप्रसिद्ध घूमटा वाली हवेली आपने ही बनवाई थी।
प्रधान मोतीरामजी भी इस वंश में बड़े सुप्रसिद्ध पुरुष हुए। आपको भी महाराणा साहब से कई रुक्के प्राप्त हुए। आपके भाई मौजीरामजी भी महाराणा साहब की भाशा से जावद, गोपाद, चित्तौड़, कुम्भलगद, मॉडलगढ़ इत्यादि कई स्थानों पर सेना लेकर दुश्मनों से लड़ने गये थे । भापके कार्यों से महाराणा साहब ने प्रसन्न होकर कई खास रुक्के बक्षे थे उनमें से एक की नकल नीचे दी जा रही है
श्री रामोजयति श्री गणेश प्रसादातु
श्री एकलिंग प्रसादातु भाले का निशान
सही स्वति श्री उदयपुर सुथांने महाराजधिराज महाराणा श्रीअरसिंहजी आदेशातु साह मोजाराम कस्य १ अप्रं गोड़वाड़ तोहे सावधरमी जाणे भलाई है........."एका एक नकस ऊपर खपजे.....(वगेरा) संमत १८२३ वर्षे चैत सुदी । मोमेर इसी पत्र के हासिये पर खास श्री हस्ताक्षरों से लिखा हुआ है।
तुं खात्र जमा बंदगी की यारी कोई सांची भूठी केगा तो तार काड्या बिना पोखम्बों दां तो म्हाने श्री एकलिंगजी री आण कदी मन में संदे लावे मत ने थने परगणो मोडबाड रो भलाग्यौ है सो सावधरमी व्वे जणा ने दिलासा दिजे न बंदगी में कसर राखे जाने सजा दीजे म्हारो हुकम है तु या जाणजे सो हूं तो तीरे उभो हूं खरची लागे जी रो कई विचार राखे मत....."थारी दाय आवे जीने तो दीजे ने दाय आवे जीरो उरो लीजे