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________________ कठोतिया कठोतिया गौत्र की उत्पत्ति-कठोतिया गौत्र का मूल गौत्र सोनी है। जिसका विवरण हम पहले दे चुके हैं। सोनी परिवार के सजन कठोति नामक ग्राम में वास करते थे और फिर वहीं से दूसरे गाँवों में गये। अतएव कठोती से कठोतिया कहलाने लगे। कठोतिया परिवार, सुजानगढ़। सेठ परसरामजी के पुत्र सेवारामजी, ताराचन्दजी और रतनचन्दजी संवत् १८७९ में लाइन से सुजानगढ़ भाये। जिस समय सुजानगढ़ बसा उस समय बीकानेर के तत्कालीन महाराजा रतनसिंहजी ने आपको शहर के बसाने वालों में आगेवान् समझकर बहुतसी जमीन मकानात एवम् दुकानें बनवाने के लिये जमीन फ्री प्रदान की। साथ ही कस्टम के आधे महसूल की माफी का परवाना मय स्वासरूके के प्रदान किया। रतनचन्दजी का परिवार वापस लाइन चला गया। ताराचन्दजी के कोई सन्तान न थी। वर्तमान परिवार सेठ सेवारामजी के दूसरे पुत्र पदमचन्दजी का है। सेठ पदमचन्दजी के बींजराजजी और पूसामलजी नामक दो पुत्र हुए। ___ सेठ बींजराजजी और पूसामलजी दोनों भाई बड़े व्यापारी होशियार तथा कष्ट सहन करने वाले परिश्रमी व्यक्ति थे। आपने संवत् १९०८ में बंगाल प्रान्त में जाकर बोडागाड़ी नामक स्थान पर अपनी फर्म स्थापित की। इसके बाद आपने घोडामारा, डोमार और कलकत्ता में भी अपनी फर्मे खोली। भाप लोगों का स्वर्गवास हो गया। आपके पश्चात् फर्म का कार्य सेठ बींजराज के पुत्र जेसराजजी और सेठ पूसालालजी के पुत्र बालचन्दजी ने सम्हाला । आप दोनों भाइयों के परिश्रम से भी फर्म की उन्नति हुई। सेठ बालचंदजी की यहाँ बहुत अच्छी प्रतिष्ठा थी। आप प्रभावशाली व्यक्ति थे। आपका स्वर्गवास हो गया। आपके गणेशमलजी, पूनमचन्दजी, मोहनलालजी और नथमलजी नामक चार पुत्र हैं। जेसराजजी के पुत्र का नाम लालचन्दजी हैं। आप सब लोग मिलनसार और उत्साही सजन हैं। आप लोग भी व्यापार का संचालन करते हैं। आप लोग श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। आपको बीकानेर दरबार की ओर से छड़ी, चपरास और कैफियत की इज्जत प्राप्त है। सेठ जैसराजजी स्थानीय म्युनिसिपेलटी के वायस प्रेसिडेण्ट हैं। तथा मोहनलालजी आनरेरी मजिस्ट्रेट हैं । वर्तमान में आपका व्यापार, डोमार, हल्दीबाड़ी, फारविसगंज, सिराजगंज और कलकत्ता में जूट, बैंकिंग और कमीशन का होता है। प्रायः सभी स्थानों पर भापकी स्थाई सम्पत्ति बनी हुई है। मृतेड़िया भूतदिया गौत्र की उत्पत्ति-ऐसा कहा जाता है कि संवत् 1००९ में जांगलदेश के सरसापट्टन नामक नगर में दुर्जनसिंह नामक एक राजा राज्य करता था। इसको भूतों के डर से मुक्त कर आचार्य श्री तरुणप्रभसरिजी ने जैन धर्मावलम्बी बनाया। इन्हीं भूत तादिया से भूतेदिया गौत्र की उत्पत्ति हुई।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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