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मासवाल जाति का इतिहास
भणी में आपकी देख रेख में एक श्री पाश्र्वनाथजी का बहुत विशाल और भव्य मंदिर बना है। इस समय आपकी दुकान पर बैंकिंग सोना चाँदी, कपड़ा खेतीवड़ी आदि व्यापार होता है। परभणी में यह फर्म बहुत प्रतिष्ठित हैं। सेठ मोहनलालजी बड़े उत्साही हैं। आपके इस समय एक पुत्र हैं जिनका नाम नेमीचंदजी है। आपका संवत् १९६५ का जन्म है।
श्री मनोहरमलजी गोठी, नाशिक आपका परिवार महामन्दिर (जोधपुर) का निवासी है। इस परिवार के पूर्वज देश से व्यापार के लिये नाशिक जिले के घोटी नामक स्थान में आये। वहाँ सेठ मनीरामजी तथा उनके पुत्र लखमीचन्दजी आसामी लेन देन का काम करते रहे। सेठ लखमीचन्दजी संवत् १९७७ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र मनोहरमलजी हुए।
मनोहरमलजी गोठी-आपका जन्म संवत् १९५९ में हुआ। अपने पिताजी के स्वर्गवासी होने के बाद भाप" सालों तक बम्बई में सर्विस करते रहे। जाति हित के कामों में आपकी बहत रुचि है। भाप बम्बई की भोसवाल मित्र मण्डल, नामक संस्था के सेक्रेटरी रहे। संवत् १९३२ से आपने नाशिक में 'गोठी ब्रादर्स" के नाम से कपड़े का व्यापार स्थापित किया। आप इस समय नाशिक जिला भोसवाल सभा और जैन बोडिंग के सेक्रेटरी हैं। नाशिक जिले के उत्साही कार्य कर्ताओं तथा जाति हितैषी व्यक्तियों में भापका नाम अग्रगण्य है।
पूंगलिया पूंगलिया गौत्र की उत्पत्ति- कहा जाता है कि लोद्रपुर (जैसलमेर के भाटी राजा रावल जैतसी के ९ वर्षीय पुत्र केलणदे को गलित कुष्ट की बिमारी हो गई थी। उस समय राजा के आग्रह से दादा जिनदत्त सूरिजी लोद्रपुर आये । तथा राजपुत्र को स्वस्थ्य फिया । कुमार केलणदे ने साधुवृत्ति धारण करने की प्रार्थना की। तब गुरु ने उसका मुण्डन कराकर सम्यक्त युक्त बारह व्रत उच्चराये । दर्शन और दीक्षा की चाह रखने के कारण इनकी गौत्र राखेचाह ( राखेचा) हुई। ये अपने निवास पुंगल से उठकर दूसरे स्थल पर बसे । इसलिये पूंगलिया राखेचा कहलाये । इस प्रकार पूङ्गलिया गौत्र की उत्पत्ति हुई।
सेठ ताराचन्दजी बीजराजजी पूंगलिया, डूगरगढ़ इस परिवार के लोग पूंगल से संमदसर नामक स्थान पर आये । वहाँ से फिर संवत् १९५२ में सेठ रावतमलजी श्री डूंगरगढ़ाआये आप बड़े मेधावी और अनुभवी सज्जन थे। डूगरगढ़ आने के पूर्व ही आपने पूरणी (भागलपुर) नामक स्थान पर अपनी फर्म पर गले का व्यापार प्रारम्भ किया। इसके बाद सफलता मिलने पर क्रमशः साहबगंज और छत्तापुर में अपनी शाखाएं खोली। संवत् १९५७ में आपका स्वर्गवास हो गया । आपके ताराचन्दजी और बींजराजजी नामक दो पुत्र हुए।