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प्रोसवास जाति का इतिहास
होता है। सेठ सुखलालजी १९८५ में स्वर्गवासी हुए। इनके पुत्र धर्मचन्दजी १९७४ में तथा सुगनचन्दजी १९५३ में गुजरे । वर्तमान में धर्मचन्दजी के पुत्र शंकरलालजी तथा सुगनचन्दजी के पुत्र नंदलालजी चोर. डिया है। आपके यहाँ “रामलाल सुखलाल" के नाम से व्यापार होता है । आपके ४ गांव माल गुजारी के हैं। सेठ नंदलालजी प्रतिष्ठित संजन हैं। धर्मध्यान में आपका अच्छा लक्ष है। आपने एक धर्मशाला भी बनवाई है।
सेठ रतनचन्द दौलतराम चोरड़िया, बाघली (खानदेश)
यह परिवार कुचेरा ( जोधपुर ) का निवासी है। देश से लगभग १२५ वर्ष पहिले सेठ लच्छीरामजी चोरडिया व्यापार के निमित्त बाधली (खानदेश) आये । तथा दुकान स्थापित की। संवत् १९१८ में ७२ साल की वय में आप स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर दौलतरामजी चोरड़िया दत्तक लिये गये । इनका भी संवत् १९३९ में स्वर्गवास हो गया। इस समय आपके पुत्र रतनचन्दजी मौजूद हैं। सेठ रतनचन्दजी स्थानकवासी ओसवाल कान्फ्रेस के प्रान्तीय सेक्रेटरी है। आपका जन्म संवत् १९३१ में हुआ। आपका परिवार आसपास के मोसवाल समाज में नामांकित माना जाता है। आपके राजमलजी, चांदमलजी तथा मानमलजी नामक तीन पुत्र हैं। राजमलजी की आयु ३० साल की है।
सेठ जेठमल सूरजमल चोरड़िया, बाघली (खानदेश )
इस परिवार का मूल निवास तींवरी ( मारवाड़) है। देश से लगभग ७५ साल पहिले सेठ रूपचन्दजी चोरड़िया व्यापार के लिये बाघली (खानदेश) आये । इनके पुत्र सूरजमलजी चोरड़िया हुए। आपका ६० साल की वय में संवत् १९७५ में स्वर्गवास हुआ। आपके पुत्र जेठमलजी मोजूद हैं।
चोरडिया जेठमलजी का धर्म के कामों में अच्छा लक्ष है। आपने बड़ी सरल प्रकृति के निरभि मानी व्यक्ति हैं । आपके यहाँ सराफी काम काज होता है । आप श्वेताम्बर स्थानक वासी आन्नाय के मानने वाले सजन है। बाघली के जैन समाज में आपको उत्तम प्रतिष्ठा है।
कोरड़-बरड़
बोरड़ या बरड़ गौत्र की उत्पत्ति
आंबागढ़ में राव बोरड़ नामक परमार राजा राज करते थे। इनको खरतरगच्छाचार्य दादा जिनदत्तसूरिजी ने संवत् १७५ में जैन धर्म से दीक्षित किया तथा उन्हें सकुटुम्ब जैन बनाया। राव बोरद की संताने बोरब तथा वरद कहलाई।