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ओसवाल जाति का इतिहास
आपने उपवास आरम्भ कर दिया और इस प्रकार निरन्तर ७२ दिनों तक आपने उपवास की तपस्या की । ता० ९ । ३ । ३१ को गांधी-इरविन पेक्ट के समझौते के मुताबिक तमाम राजवन्दी छोड़ दिने गये, इस दिन उपवास की हालत में आप भी जेल से मुक्त कर दिये गये ।
इसी प्रकार ९ । १ । ३२ को सत्याग्रह आन्दोलन में सम्मिलित होने के उपलक्ष में आप पर १० हजार रुपया दण्ड तथा ३ साल ७॥ मास की सजा हुई जो पीछे से घटा कर, १५००) दण्ड के साथ 1 साल की करदी गई। इस वार भी आपने गवर्नमेंट से एकसा व्यवहार करने की प्रार्थना की लेकिन फिर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया अतः आपने पुनः पूर्ववत् उपवास आरम्भ कर दिया जब लगातार ६२ दिनों तक उपवास करते हुए आप बहुत अशक्त होगये तब ता० ४ । ५ । ३३ को सी० पी० गवर्नमेंट ने आपको स्वयं रिहा कर दिया। बाहर आने पर आपको ज्ञात हुआ कि आपके किसी मित्र ने आपकी ओर से १५००) भर दिये हैं वे रुपये आपने उन्हें सधन्यवाद लौटा दिये ।
इस प्रकार आपका त्याग और तपस्या का पवित्र जीवन ओसवाल समाज के लिये अभिमान और गौरव का द्योतक है तथा सम्पत्ति के मद में चूर वासनाओं के कीट समाज के नवयुवकों के लिये नवीन मार्ग दर्शक हैं । अभी अपने देश के हितार्थं घी तथा शकर का त्याग कर रक्खा है । इस समय आप नागपुर नगर कांग्रेस कमेटी के प्रेसिडेण्ट है। आपके छोटे भ्राता आसकरणजी ने भी परदा प्रथा का त्याग किया है। आपका विवाह बहुत ही सुधरी प्रथा से हुआ था। आपकी धर्मपत्नी सन् १९३० में ४॥ मास के लिये जैल गई थीं इस समय आप सेठ पूनमचन्दजी की कपड़े की दुकान का काम देखते हैं।
श्री सौभागमलजी सेठिया ( रांका ) का खानदान, मद्रास
इस खानदान का खास निवासस्थान नागौर का है। आप लोग रोका सेठिया गौत्रीय भोसवाल श्वेताम्बर जैन समाज के मंदिर आम्नाय को मानने वाले सज्जन हैं । आपके परिवार में श्रीयुत पारसमल जी सेठिया हुए। आप करीब पचास वर्ष प्रथम नागौर से हैदराबाद आये । यहाँ आपने अनाज का व्यापार शुरू किया, आपके एक पुत्र हुए जिनका नाम सौभागमलजी था ।
श्री सौभागमलजी सेठिया का जन्म संवत् १९९० में हुआ | व्यापार करते रहे। उसके पश्चात् सं० १९६७ में आप मद्रास आये और किया। इस फर्म के व्यवसाय में आपको अच्छी सफलता मिली । गया । आप के दो पुत्र हुए जिनके नाम सेठ उम्मेदमलजी तथा धीरजमलजी हैं ।
आप भी हैदराबाद में अनाज का यहाँ पर बैकिंग का व्यवसाय आपका संवत् १९७६ में स्वर्गवास हो
सेठ उम्मेदमलजी का जन्म संवत् १९४६ में तथा धीरजमलजी का संवत् १९४९ में हुआ । आप दोनों भाई बड़े होशियार तथा व्यापार दक्ष पुरुष हैं। आप के हाथों से इस फर्म की बहुत उन्नति हुई। संवत् १९८० तक आप दोनों शामिल व्यापार करते रहे। इसके पश्चात् दोनों अलग २ हो गये और सेठ उम्मेदमलजी ने मेसर्स सौभागमल उम्मैदमंल के नाम से कागज का व्यवसाय तथा धीरजमलजी मेसर्स सौभागमल धीरजमल के नाम से बैकिंग का व्यवसाय करना शुरू कर दिया ।
सेठ उम्मेदमलजी के तीन पुत्र हैं जिनके पानमलजी, भंवरलालजी तथा छोटमलजी हैं। इनमें
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