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________________ गोलेडा जूट के व्यापार की ओर अपना ध्यान दिया। तथा सम्वत् १९८१ में आपने फारविसगंज (पूर्णिया) आपके इस समय दो में अपनी एक ब्रांच खोली आप बाईस सम्प्रदाय के मानने वाले सज्जन हैं। पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः पूनमचन्दजी एवम् बेवरचन्दजी हैं । आप दोनों भाई भी मिलनसार एवम् सज्जन व्यक्ति हैं । आप लोग भी व्यापार संचालन करते हैं। पुनमचन्दजी के सोहनलालजी एवम् सम्पतलालजी तथा घेवरचंदजी के जतनलालजी, माणकचन्दजी एवम् चम्पालालजी नामक तीन पुत्र हैं । आप सब अभी बालक हैं । आपका व्यापार इस समय कलकत्ता में गणेश भगत कटला में जूट एवम् आदत का होता है । तथा फारविसगंज में पूनमचन्द वेनरचन्द के नाम से जूट का तथा आढ़त का व्यापार होता है । श्री समरथमल मेघराज गोलेछा फलोदी इस परिवार के पूर्वज गोलेछा होराजी थे इनकी संतानें हीराणी कहलाई । गोलेछा हीराजी संवत् १७८७ में विद्यमान थे । उनके बाद क्रमशः भोपतसीजी, करमसीजी और मलूकचंदजी हुए । मलूकचन्दजी वजनदार व्यक्ति थे। उनके नाम पर जोधपुर राज से संवत् १७९३ में एक सनद हुई थी । इनके पुत्र सरूपचन्दजी हुए, तथा सरूपचन्दजी के शिवजीरामजी और बनेचंदजी नामक २ पुत्र हुए | शिवजीरामजी के थानमलजी, धनसुखदासजी तथा मालचन्दजी और बनेचन्दजी के उदयचन्दजी तथा सागरचंदजी नामक पुत्र हुए । गोलेछा धनसुखदासजी की चिट्ठियों से पता चलता है कि संवत् १८६० में इनकी दुकानें उज्जैन और जालना में थीं । गोलेछा थानमलजी के पुत्र नवलचन्दजी और हजारीमलजी हुए । थानमलजी और नवलचन्दजी ने बनारस में दुकान की थी। नवलचन्दजी का संवत् १९५० में अंतकाल हुआ । नवलमलजी के पुत्र 'छोगमलजी और समरथमलजी हुए । छोगमलजी का अंतकाल १९७८ में हुआ । इस समय छोगमलजी के पुत्र गोलेछा मेघराजजी मौजूद हैं। इन्होंने हीराचन्द पूनमचन्द छल्लानी सिकन्दराबाद वालों की वरंगल दुकान पर मुनीमात की तथा संवत् १९७६ से ८२ तक निहालचन्द नेमीचन्द सोलापुर वालों की पार्टनरशिप में काम किया और इस समय १९८३ से सोलापुर में अपना कपड़े का घरू व्यापार करते हैं । गोलेछा समरथमलजी विद्यमान हैं । इन्होंने संवत् १९५५ से ८२ तक निहालचन्द पूनमचन्द हैदराबाद वालों की तथा १९८७ तक भोलाराम माणकलाल की मुनीमात की । आपके पौत्र घेवरचन्दजी का संवत् १९८८ में २० साल की अल्पायु में शरीरावसान हो गया है और दूसरे आसकरणजी मौजूद हैं । इसी प्रकार मालचन्दजी, उदयचन्दजी तथा सागरचन्दजी के परिवार में क्रमशः नेमीचन्दजी अगरचन्दजी व कँवरलालजी विद्यमान हैं। १७९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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