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ओसवाल जाति का इतिहास
महाराणा कुम्भ और श्रोसवाल मुत्सुद्दी
महाराणा हमीर के पश्चात् महाराणा कुम्भ के समय में भी कई ओसवाल मुत्सुद्दी ऐसे हुए जिन्होंने मेवाड़ राज्य की बड़ी २ सेवाएं की। इनमें से बेला भण्डारी गुणवाज और रतनसिंह के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। रतनसिंह जी ने गोड़वाड़ के राणकपुर नामक स्थान पर सुप्रसिद्ध जैन मन्दिर बनवाया। जिसका उल्लेख धार्मिक प्रकरण में दिया जावेगा।
इसी प्रकार राणा साँगा के समय में सुप्रसिद्ध कर्माशाह के पिता तोलाशाह, उनके पश्चात् राणा रतनसिंह के समय में शत्रुजय के उद्धार कर्ता सुप्रसिद्ध कर्माशाह दीवान रहे। इनका गोत्र राजकोठारी था । इनका भी विशेष परिचय इस ग्रन्थ के धार्मिक प्रकरण में दिया जावेगा। महाराणा उदयसिंह और प्रोसवाल मुत्सुद्दी
.. स्वामिभक्त आशाशाह-राणा साँगा के द्वितीय पुत्र महाराणा रतनसिंह के पश्चात् मेवाड़ की गद्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठे । मगर सरदारों के साथ इनकी अनबन रहने से बहुत से सरदारों ने मिलकर इन्हें गद्दी से उतार दिया। इनके पश्चात् इनका भाई दासी पुत्र बनबीर गद्दी पर बैठा, इसकी प्रकृति बहुत कुटिल थी। उस समय मेवाड़ के भावी राणा उदयसिंह बिल्कुल बालक थे। बनवीर ने इन्हें मारने का षड्यन्त्र रचा। जब कुमार उदयसिंह भोजन करके सो गये और उनकी पन्ना नामक धाय उनकी सेवा कर रही थी, उसी समय रात्रि में रणवास में घोर आर्तनाद का शब्द सुनाई पड़ा । जिसे सुनकर पन्ना धाय डर उठी । इतने ही में वारी नामक नाई ने आकर उससे कहा कि बनवीर ने राणा विक्रमादित्य को मार डाला । यह सुनते ही बालक उदयसिंह की अनिष्ट आशंका से धाय का हृदय काँप उठा। उसने तत्काल १५ वर्ष के बालक उदयसिंह को वहाँ से चतुराई पूर्वक निकाल दिया और उसके स्थान पर अपने लड़के को लिटा दिया। इतने ही में बनवीर वहाँ आ पहुँचा और उसने उदयसिंह के धोखे में धाय के पुत्र को करल कर दिया।
इसके पश्चात् पन्ना धाय उदयसिंह को लेकर रक्षा के लिये कई स्थानों पर गई, मगर उस विपत्ति के समय किसी ने राजकुमार को शरण देना स्वीकार न किया। तब वह कुम्भलमेरु के किलेदार ओसवाल जातीय आशाशाह देपरा के पास गई, पहले तो आशाशाह ने शरण देने से इन्कार कर दिया । मगर जब उसकी माता को बात मालूम हुई तब उसने इस कायरता के लिये अपने पुत्र को बहुत फटकारा, और क्रोध में आकर उसे मारने को झपटी तब आशाशाह ने उसके पैर पकड़ लिये, और उदयसिंह को बहुत