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________________ झाबक राजजी, गुलराजजी तथा फौजराजजी सम्बत् १९४० में मद्रास आये और यहाँ पर सराफी का धन्धा चाल किया । सेठ अनराजजी का सं १९६७ में तथा सेठ सलहराजजी का संवत् १९०३ में स्वर्गवास हुआ। सलहराजजी फलौदी में कानूगो का काम करते थे। वर्तमान में इस खानदान में सेठ गुलराजजी, फौजराजजी तथा गुलराजजी के पुत्र सम्पतलालजो व राणूलालजी और अनराजजी के पुत्र कंवरलालजी मौजूद हैं । आपके यहाँ पर मद्रास में चाँदी, सोना व ब्याज का काम होता है । यह परिवार लगभग ३०० वर्षों से कानूगी का कार्य करता आ रहा है। फलौदी के कानगों खानदानों को समय समय पर कई लागें मिलती रही हैं। माबक झाबक गौत्र की उत्पत्ति-ऐसा कहा जाता है कि राठौड़ वंशीय राव शृंदाजी के वंश में राजा मुम्बद, झाबुआ (मालवा) में राज्य करते थे। संवत् १५७५ में खरतर गच्छा चार्य श्री जिनभद्र सूरि के उपदेश से इन्होंने जैनधर्म और ओसर्वश को अङ्गीकार किया। इन्हीं के वंशज आगे चल कर झाबक, झामड़, भौर दुवक कहलाये। झाबक फूलचन्दजी का खानदान, फलौदी। उपरोक्त साबक वंश में सेठ जबरसिंहजी हुए जो पहले जैसलमेर में रहते थे और पश्चात् आप फलौदी में भाकर बस गये । इनके पौत्र धरमचन्दजी हुए । धरमचन्दजी के पुत्र जीवराजजी और मानमलजी बड़े मामालित पुरुष हुए। आप फलौदी की ओसवाल जाति में सर्व प्रथम चौधरी हुए। इन्हीं के नाम से आज भी यह खानदान "जिया माना का परिवार" के नाम से प्रसिद्ध है। धर्मचन्दजी के तीसरे पुत्र अखैचन्दजी के परिवार वाले मड़िया झाबक कहलाते हैं। झाबक जीवराजजी के पश्चात् क्रमशः भासकरणजी और भागचन्दजी हुए। भागचन्दजी के पुत्र अचलदासजी हुए। अचलदासजी झा क-आप इस खानदान में अच्छे प्रतापी हुए। आपने जाति सेवा में बहुत अच्छा भाग लिया था। दरबार ने आपको कई सनदें इनायत की थीं। पर वानों से मालूम होता है, कि आप १७५० से १७८७ तक विद्यमान थे। आपके अबीरचन्दजी और गुलाबचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । अबीरचन्दजी भी फलौदी के ओसवाल और माहेश्वरी समाज में प्रधान व्यक्ति थे । आपके उदयचन्दजी नामक एक पुत्र और साह कुँवर नामक एक पुत्री हुई। साहकुंवर सुप्रसिद्ध डहा तिलोकसीजी की पत्नी, तथा पदमसीजी, धरमसीजी, अमरसीजी, टीकमसीजी आदि की माता थीं। झाबक उदयचन्दजी के कपूरचन्दजी, और रायसिंहजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें से कपूचन्दजी के वंश में झाबक मंगलचन्दजी हैं जिनका परिचय भागे दिया जा रहा है। तथा रायसिंहजी के परिवार में शावक फूलचन्दजी एवं नेमीचन्दजी हैं। झाबक रायसिंहजी-आप अपने समय के अच्छे समझदार, प्रतिभाशाली और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। इन्हें जोधपुर दरबार से निम्नलिखत एक परवाना प्राप्त हुभा था। "अपरंच उठारा ओसवाला री चौधर झाबखां री है सो माबख जिया मामा रा परवार रा सदा माफक किया जावे है तिणंरो परवाणो सम्बत् १७३६ रा साल रोश्णा कने हाजर है। सो इणोरी सदामंदरी मरजाद में कोई उजर खोट करे निण कने रु.२७००) श्री १५९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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