SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा सम्पति के शिलालेख (५) दिव्यरान २ के पृष्ठ ४३० में स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ है कि सम्प्रति, कुणाल का पुत्र था। इसी प्रकार मुख्य लेख में भी हमने यही सिद्ध किया है कि अशोक के बाद गद्दी पर बैठने वाला प्रियदर्शिन् ही सम्प्रति था। इससे भी यही सिद्ध होता है कि अशोक के पश्चात् उसके पुत्र कुणाल का पुत्र ही गद्दी पर बैठा था। पुराणों में जो कुणाल का नाम राजकर्ता के रूप में लिखा गया है, वह यथार्थ नहीं। (६) पालिभाषा के अधिकार-युक्त अध्ययनकर्ता प्रो० विल्सन साहब लिखते हैं कि33 “प्राणियों का वध-रोकने विषयक उसके आर्डिनेंस (विशेष कानून ) बौद्ध धर्म की अपेक्षा उसके प्रतिस्पर्धी जैनधर्म के सिद्धांतों से अधिक मेल खाते हैं। इस प्रकार एक समर्थ और गहरे अभ्यासी के शब्दों से भी यही सिद्ध होता है कि शिलालेलों की लिपि जैनधर्मानुयायी की ही है और बौद्धधर्म से उसका कोई खास सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता। (७) इसी प्रकार बौद्ध धर्म के दूसरे एक विशेषज्ञ रेव्हरेंड एस० बिल, जोर देकर बतलाते हैं कि३४ ग्रीक पुस्तकों में बौद्ध (३२) Radha Kumood Mookerjee, Asoka p. 8. Ind. Ant. 1914 p. 168 f. n. 67. (३३) देखिए ज. रा० ए० सा० १८८७ पृ. २७५, His ordinances concerning sparing of animal life agree much more closely with the ideas of the heretical Jains than those of the Buddhists. (३४ ) ज. रा० ए० सो० पु. १६ पृ० ४२०, Rev. S. Beal emphatically dictates, “I doubt very much
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy