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________________ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग www सर्वमंगल मांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतु शासनम् ॥ परिशिष्ट ( अ) (पैराग्राफ नं० २ और २ से संबंधित फुटनोट' के अनुसार । सुदर्शन तालाब की प्रशस्ति का अनुवाद जिस रूप में किया गया है, उसके अनुसार प्रो० हुल्टश ने स्वयं यशकीर्ति पूर्ण कलश क्षत्रप रुद्रदामन के सिर पर चढ़ाया है; किन्तु फिर भी मुझे सम्मानपूर्वक उनसे भिन्न मत प्रकट करना पड़ता है। अर्थात् मैं उस कीर्तिकलश को सम्राट सम्प्रति के सिर पर चढ़ाना चाहता हूँ। और इसके लिये अपनी इन दलीलों को उपस्थित करता हूँ। (१) नवीं पंक्ति में-"विस्तृत" और "णा ागर्भात् प्रभृत्य अभिहत समुदित राजलक्ष्मी" इन दो वाक्यों के बीच बहुत ज्यादा खाली जगह छूटी हुई है और इस वाक्य का अर्थ इस प्रकार किया गया है कि, "( वह ) जब से गर्भ में आया। तब से राज्य-ऋद्धि में अवाधित रूप से वृद्धि होती रही थी।" ... ___ हम ऐतिहासिक प्रमाणों से इस बात को भली भाँति जानते हैं। रुद्रदामन के पितामह चाष्टाण महाक्षत्रप ने जिन जिन देशों (१) पैरा नं० १५ का 'ब' । (२) शिलालेखादि वाले अंश का पैरा नं. २ देखिए । (३) एपिग्रा० इण्डिका, पु०८, पृ० ३२ और उसके बाद । (४) देखिए टिप्पणी नं० ६४ ।
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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