________________
(३०) उपाध्याय था सहजसुन्दर, संवेग पक्ष उद्धार किया ।
कठिन क्रिया तप देख श्रापका, कई मुमुक्षु संयम लिया। आगम लोपक मूर्ति उत्थापक, जिनको भी अपनाय लिया। शुद्ध संवेगी उद्धारक शाखा, सत्यमार्ग प्रकाश किया ॥१०८
८०-प्राचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर सं० १८४७ पट्ट असी पर सिद्ध सूरीश्वर, वैद्य मेहता कुल दीपक थे।
अलिप्त थे जल कमल सम, मद कंदर्प के जीपक थे । विद्या मन्त्र के थे अधिकारी, यश दुनियां में छाया था।
चमत्कार को नमस्कार था, कई भूपति शीश जुकाया था। .८१-प्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० १८५१ पठ इक्यासी कक्कसूरिजी, वैद्य जाति उज्जारी थी।
विद्वता आपकी थी अति नामी, यश की रेखा भारी थी। यति पंक्ति में रहने पर भी, निस्पृही शुद्धाचारी थे। . अहा-हा ऐसे श्रीपूज्य भी शासन के हितकारी थे ॥११०
८२-प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सं० १६०५ पट्ट बैयांसी देवगुप्त सूरि, वैद्य विचक्षण भारी थे।
व्याकरण न्याय तर्क विभूति, सैद्धान्तिक जग जाहारी थे। मन्बेश्वर सरदार सिंह ने, महोत्सव खूब बनाया था। 'गुरु कृपा से उस मन्त्री ने, संघपति पद को पाया था॥१११