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७२-आचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० १५६४ बहोतर पट्ट कक्कसूरिवर, शाखा वैद्य दिवाकर थे।
हस्तागत थी चित्र वेल्ली, सुकृत में दानेश्वर थे । त्रि सय नारी दीक्षा घारी, शत असी शिष्य बनाये थे। __उद्योत किया था जैन धर्म का, लुम्पक को समझाये थे। ...७३-आचार्य श्री देवगुप्तसूरीश्वर सं० १६३१ पट्ट तिहोत्तर देवगुप्त सूरि, श्रेष्टिकुल प्रभाकर थे।
साथ पिता के दीक्षा ली थी, विद्या में विद्याधर थे । शुद्ध संयम अरु क्रिया पात्र, प्रभाव जिनका भारी था।
कुमति हटाये भूप नमाये, नौ बाड़ शुद्ध ब्रह्मचारी थे।
७४-प्राचार्य श्री सिद्धसरीश्वर सं० १६५५ पट्ट चहोतर, सिद्ध सूरीश्वर, वाफणा गुण भण्डारी थे।
देश देश में कीर्ति प्रापकी, शासन को हितकारी थे। अमृत था वाणी में जिनके. प्रखर उपदेश के दाता थे। ...: वादी नित नतमस्तक रहते, स्वपर मत के ज्ञाता थे।
५-छाचार्य श्री ककसरीश्वर सं० १६८६ पट्ट पचूतर कक्कसूरीश्वर, श्रेष्टि वीर यश धारी थे।
उन पंचानन सिंह सामने, वादी बन गये छारी थे। भू भ्रमन कर नर नारी को, दीक्षा दी उपकारी थे।
समार्ग कुमति को लाये, ऐसे वे हितकारी थे।