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देशल अपने जेष्ट पुत्र को, देवगिरि को पठाया था।
जिसने वहां के किले बीच में, मन्दिर जबर बनाया था । गुरुदेव से करी विनती, प्रतिष्ठा जाकर करवाई थी।
राजा प्रजा भये अनुरागी, तैलंग में ज्योति जगाई थी ॥८७ अलाउद्दीन महा खूनी का, जुलम भारत में भारी था।
जला दिये भण्डार ज्ञान के, ऐसा अत्याचारी था । महातीर्थ शत्रुञ्जय ऊपर, सेना लेकर आया था।
तेरहसौ गुणन्तर सम्वत् , तीर्थ उच्छेद कराया था। मन्दिर और मूर्तियां सबको, दुष्ट नष्ट कर डाले थे।
हा-हा कार हुआ भारत में, छाये बादल काले थे ॥ कृपा सिद्धसूरि की पाकर, देशल उद्धार कराया था।
समरसिंह सा पांच पुत्रों ने, वैद्य कुल दिपाया था । महिपाला राणा आरासण, फलही खांन से दीनी थी।
पूजा हीरा पन्ना मोती से, संघ बधा कर लीनी थी.॥ तेरहसौ इकोत्तर वर्षे, पाटण से संघ चलाया था।
तीर्थ प्रतिष्ठा सिद्ध सूरि ने, करके मंगल मनाया था । भरतादि कई उद्धार करवाये, स्वाधीन सामग्री सारी थी। ... ... धर्मान्ध मुगलों के राज में, बात बड़ी यह भारी थी। वीर समरसिंह दो वर्षों में, तीर्थ स्वर्ग बनाया था।
महा-हा धन्य समरसिंह, जिनके गुण सुर गाया था।
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