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६० - आचार्य श्री कक्कसूरीश्वर से० १२८३ पट्ट साठवें कक्कसूरीश्वर, वीर नाहटा भारी थे ।
दिव्य ज्ञान तप संयम के गुण, खूब प्रतिशप धारी थे ॥ प्रभाविक थे जिन शासन के, सत्य धर्म प्रचारी थे ।
किया उद्धार अनेक भव्यों का, ऐसे पर उपकारी थे ।
६१ - आचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर एक साठवें पट्ट देवगुप्तसूरि, बागरेचा भव तारक थे ।
कहां लों करू आपकी महिमा, अनेक गुणों कधारक थे | त्रिय शत नर और नारी सात सौ, दीक्षा दे उद्योत किया । निर्माण किये ग्रन्थों के भारी, ज्ञान पूर्व दान दिया ॥
६२ - श्राचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं० १२८६ पट्ट बांसठवें सिद्धसूरीश्वर वैद्य मेहता कुल उजागर थे ।
छत्तीस सहस्र सुवर्ण मुद्रा से, ज्ञान पूजा रत्नाकर थे तीर्थ यात्रा संघ निकाला, प्रतिष्टायें आप करवाई थी । स्याद्वाद सिद्धान्त वीर का, उज्वल ज्योति जगाई थी ॥ ६३ - आचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० १२६६ पट्ट तेसठवें कक्कसूरिजी हत्थुडिये कुल के हीरे थे । वादी गंजन स्वमत्त मण्डन, धर्म प्रचारक धीरे थे | तप संयम शुद्ध क्रिया पात्र, कई दीक्षा दे उद्धार किया ।
कोटि बन्दन करते उनको जैन झण्ड फहराय दिया ॥
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