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(२०) ५२-आचार्य श्रीदेवगुप्त सूरीश्वर सं०१२११ पट्ट बावनवें देवगुप्त हुए, सूरि सदा जयकारी थे।
ज्ञान भानु की तीव्र रश्मि से, मिथ्या अक्ष विडारी थे॥ चमत्कार था आत्मबल का, दुनियां शीश झुकाती थी। उज्ज्वल यश जगत में छाया, देवनारी गुण गाती थी।६८
५३-प्राचार्य श्रीसिद्ध सूरीश्वर सं० १२२३ तेपनवें पट्ट सिद्ध सूरीश्वर, बलाह गौत्र चमकाया था। ___ म्लेच्छों ने उपकेशपुर में, उपद्रव खूब मचाया था । वीरभद्र थे शिष्य आपके व्योम मार्ग विहारी थे। प्राण प्रण से की तीर्थ रक्षा, गुरु ऐसे चमत्कारी थे ॥६६
५४-प्राचार्य श्रीकक्क सूरीश्वर वि० सं० १२५२ पट्ट चोपनवें कक्कसूरीश्वर, जांघड़ा जाति के वीर थे।
करते चरण कमल की सेवा, वे भवसागर के तीर थे । सिंह गर्जना सुन के वादी, गीदड़ जीव बचाते थे। देश देश में घूम सूरिजी शासन सितारा चमकाते थे ॥७०
५५-आचार्य श्रीदेवगुप्तसूरीश्वर सं० १२५६ पट्ट पचावन देवगुप्त हुए बोत्थरा गौत्र सितारे थे ।
स्वपर मत्त के थे वे मर्मज्ञ, वादी मद विडारे थे॥ जम्बर था प्रभाव प्रापका, नृपति पैरों में नमते थे।
अप्रमत मन के थे स्वामी, शान ध्यान में रमते थे ॥७१