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४४ - श्राचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर
चौचालीसवें सिद्ध सूरीश्वर श्रेष्टि कुल दिवाकर थे । दर्शन ज्ञान चारित्र वारिधि, गुण सब ही लोकोत्तर थे ॥ थे वे जलनिधि करुणा रस के, पतित पावन बनाते थे । ऐसे महापुरुषों के सुन्दर, सुरवर मिल गुण गाते थे |
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महा प्रभाविक कृष्णाऋषि हुए, तप तपने में सूरे थे ।
सपाद लक्ष देश के अन्दर प्रभाव आपके पूरे थे | नागपुर नारायण श्रेष्ठ, राजा भी समकित पाया था ।
लाखों जैन बनाये गुरु ने, मन्दिर निर्माण कराया था ।। ४५ - श्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० ६१८ पैंतालीसवें कक्कसूरीन्द्रा, श्रार्थ गौत्र उज्जागर थे ।
चन्द्र समान शीतलता जिनकी, सद्ज्ञान के श्रागर थे । वीर बाणी उपदेशामृत से, भव्यों का उद्धार किया । प्रतिष्ठायें कई करवाई, मौलिक ग्रन्थ निर्माण किया ।
४६ - आचार्य श्रीदेवगुप्त सूरीश्वर सं० ६६३ छचालीस पट्टधर शोभे, देवगुप्त सूरीश्वर थे ।
श्रवतंस थे चोरड़िया कुल के, ज्ञान के दिनेश्वर थे ॥ देश विदेश में धर्म प्रचार की, श्राज्ञा शिष्यों को करदी थी । नूतन जैन बनाये लाखों, जैन ज्योति चमका दी थी ।