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२७ - प्राचार्य श्री यक्षदेव सूरीश्वर पट्ट सतावीस यक्षदेव गुरु, भूरि गौत्र दिपाया था । तप जप ज्ञान अपूर्व करके, जैन झण्ड फहराया था । संघ चतुर्विध के थे नायक, सुरनर शीश झुकाते थे ।
सुन करके उपदेश गुरु का, मुमुक्षु दीक्षा पाते थे | २८ - श्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर
बीस पट्ट कक्कसूरि हुए, श्रेष्टि कुल उज्जारा था ।
बादी गंजन बन केसरी, जैन धर्म प्रचारा था ॥ जैन मन्दिरो की करी प्रतिष्ठा, दर्शन खूब दिपाया था । जिनके गुणों को कहे बृहस्पति, फिर भी पार न पाया था । २६ - आचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर
श्री श्रीमाल गौत्र के भूषण, देवगुप्त सूरि था नाम ।
सुविहिताप थे पूर्वधर, धर्म-प्रचार करना था काम । कन्या कुब्ज देश का नायक, चित्रगेंद अधिकारी था ।
उनको जैन बनाया गुरु ने, सुवर्ण मन्दिर मणिका भारीथा । ३० -- श्राचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर तीसवें पट्ट घर सिद्धसूरीश्वर तप कर सिद्धि पाई थी । नत मस्तक बन गये बादीगण, विजय भेरी बजाई थी । किये ग्रन्थ निर्माण अपूर्व, प्रतिष्ठाएँ खूब कराई थी ।
अमृत पी कर जिन वाणी का करएक दीक्षा पाई थी ।